Monday, May 4, 2009

गम का आशियाना

तू बदनाम न हो ज़माने में
इसीलिए मैं आ गया गम के आशियाने में
तेरे हुस्न पर ए हसीना
बेशक न कोई हक मेरा
पर यादें तो तेरी सिर्फ मेरी हैं
तेरी आँखों की वो हया , चेहरे की हँसी
वो शर्म वो हर एक अदा
कैसे मैं सब भुला दू
तू ही तो थी मेरी जीवन रेखा
राह भी तू मंजिल भी तू
हर मर्ज़ की मेरे तो दवा भी तू
बिन तेरे तो मैं बस एक पाषाण मूरत हूँ
जिंदा हूँ बस क्यूंकि दूजो की ज़रूरत हूँ
आँखों में बसी हैं एक तस्वीर तेरी
जो हर पल तेरी याद दिलाती हैं
तेरी दबी दबी सी हंसी वो बचकानी मीठी बातें
सब मेरे दिल को गुदगुदाती हैं
तू हर वक़्त हर पल बड़ा याद आती हैं
कहीं तू बदनाम ना हो ज़माने में
बस इसीलिए तो मैं आ गया
मैं गम के इस आशियाने में

क्यों हैं तू विचलित इतना

क्यों हैं तू विचलित इतना
ये घडी बीत जाती हैं
थी जो मस्ती ज़िन्दगी में
वो फिर लौट आनी हैं
ये जो गम हैं तुझ पर आया
ये कुछ पल की कहानी हैं
बढ़ता जा तू अपनी राह
मंजिल तुझे अब पानी हैं
क्यों हैं तू विश्वास खोता
ये बस एक परेशानी हैं
ये हैं समय का पलडा
ये तो खुदा की मेहरबानी हैं
हो न जो बाधा राहो में
तो फिर क्या ये जिंदगानी हैं
किस्मत को दोष देना तो
एक पराजित की वाणी हैं
लड़कर जिसने भाग्य से
भाग्य रेखा बदल डाली
विजय बनती उपहार उसका
किस्मत बनती दासी हैं
और उसकी शौर्य गाथा जन जन की ज़ुबानी हैं
हारा वो हैं जिसने हाथ हिम्मत का छोडा
थाम ले हाथ हिम्मत का
वो तेरी हमराही हैं
जिन्दगी आसां हैं ऐसा तो मैं नहीं कहता
पर कौन हैं ऐसा दुनिया में जो कोई गम नहीं सहता
गम के अंधियारे में भी तुझे जोत जलानी हैं
हैं जो ज्योति अंतर में वो सतह पर लानी हैं
गम थोडी आग नहीं और बाकि बस धुआं हैं
दुनिया में जीता वही हैं जिसने ये बात जानी हैं
आगे बढ़ और प्रण कर
कि बन जायेगा तू वो कुआँ
जिसमे आग से लड़ने को हिम्मत का पानी हैं
रखना शक्ति अपनी बाहों में
फिर आग खुद ही बुझ जानी हैं
बढ़ता जा तू अपनी राह पर
तेरी मंजिल तुझ ही को पानी हैं
क्यों हैं तू विचलित इतना
ये घडी बीत जानी हैं...............