खुनी मेलो की तेयारियां हो गयी है,
इंसानियत की कब्र खुद रही है,
रिश्तों चिताये सज गयी है,
बस चिंगारी देने की देरी है |
इंसानियत की कब्र खुद रही है,
रिश्तों चिताये सज गयी है,
बस चिंगारी देने की देरी है |
उत्सव राम-अल्लाह के दर पर होगा,
स्वर्ग पाने की लालसा में ,
अवतरित ज़मीं पर जहन्नुम होगा ,
जख्मो के होंगे आभूषण ,
जख्मो के होंगे आभूषण ,
कराह का सुरीला सुर होगा ,
काली रात आ गयी है ,
बस चिंगारी देने की देरी है|
कांटे अब डगर पर होंगे नहीं,
लाशो के कालीन बिछने को है,
होगी सांझ रंग-बिरंगी यारो,
विधवा की साडी के रंग उतरने को है,
शांत घर का आंगन होगा ,
किलकारियां अब खोने को है,
अश्रु धार शुरू हो गयी है,
बस चिंगारी देने की देरी है|
रोकने को बढते कदम हमारे,
चाहे जितने हथकंडे अपना ले,
बैरी अब ना जीत पायेगा ,
इस मौत का मोहोत्सव में ,
देशप्रेमी बन हैवान आएगा,
लाल जमीं हो गयी है ,
बस चिंगारी देने की देरी है|
हे वीर-शूरवीर जाते हुए उत्सव में,
बच्चों की खिलोने,बीवी का सिंदूर,
बाप की लाठी ,माँ की आँखों का नूर,
मोल की खातिर लेते जाना,
गम की बोलियां लगनी है,
दर्द की दुकाने सज गयी है,
दर्द की दुकाने सज गयी है,
बस चिंगारी देने की देरी है|