Tuesday, January 26, 2010

सवाल तुझसे है ज़िन्दगी

लगता है पराया ज़माना हो गया है,
दर्द अपना बंटाना चाहता नहीं,
अब जाने कौनसी राह ले चूका हूँ
ऐ ज़िन्दगी तुझसे मैं अपने दिल का हाल कहता हूँ
आँखों में आंसू छलक पड़े,
दर्द दिल का हम किससे कहे,
ज़ख्म किसे हम दिखलाये,
जो हम-दम था हमराही था ,
जिसे जीवन का लक्ष्य बनाया था ,
उसी ने घाव दिए है ,
रहती  थी सदा मुस्कान जिन लबों पर,
उन पर  गम के फसाने  आ गए  ,
ज़माने को बदलने का जुनून,
ज़मीं को आकाश से जोड़ने सी  चाह ,
सब आईने कि तरह चूर-चूर हो गए
स्वछंद पवन के साथ खेलने वाला
हर वक़्त वासंती मस्ती में रहेने  वाला
जीवन का तात्पर्य ढूंढ़ता  हूँ
जाने क्यूँ अंधियारी गलियों में
अपनी ज़िन्दगी ढूंढ़ता हूँ
तन्हाई  से अब याराना है,
..................................
यह ना कहना अधुरा जाम पिला दीया
बस मैंने तो हाल दिल का बयां किया
पूरी कभी कोई रचना होती नहीं
यारों यह दास्ताँ अभी अधूरी ही सही
:)

थोड़ी देश भक्ति :)

लहू देकर वीरों ने हमे यह शांत चमन दीया,
कुछ लालचियों ने इसे इर्ष्या द्वेष से भर दीया
शहादत उन वीरों कि यूँ ना बेकार होगी
वादा है माँ तुझसे फिर
तेरे आंचल में गोलियों के धमाके नहीं
प्रेम गीतों कि बहार होगी
प्रेम सारंगी कि झंकार होगी
...............................

Sunday, January 24, 2010

जीवन की उस राह पर जहाँ में टूट सा गया था :)

हर  राह  पर  ठोकर  खाई ,
हर किसी ने फरेब कर ,
 घाव कई पीठ  पर दिए ,
टुकड़े लाखों दिल के किए,
हो गए बेगाने जो अपने थे,
तोड़ दिए ख्वाब  जो संजोये हमने थे,
ज़िन्दगी बोझ सी बन गई
ज़ीने की कोई वजह  नज़र नहीं आती 
तब दूर  अंधियारे आकाश से 
एक रोशनी जीने की आस दे गई
जैसे पतझड़ में  खड़े लाचार  वृक्ष को 
बसंती हवा नव जीवन  दे गई,
जैसे ग्रीष्म से प्यासी धरा को,
सावनी घटाएँ तृप्ति दे गई,
समझ अनजानी सी आ गई,
ज़िन्दगी की पहेली वो सुलझा गई,
कभी  लगता है खुद मेरी तकदीर ,
वो रूप ले मुझे सिख दे गई,
तोह कभी खुदरत का करिश्मा लगता है,
पर मुझे एक नयी ज़िन्दगी दे गई 
....................................
कभी  ख़त्म  होती नहीं दिल की उलझने  
हर लम्हा खुद में एक उलझन
जो इंसा उलझन से डर गया 
जीवन उसने क्या जीया 
समझ खुद को पाया नहीं
अपनी क्षमता   को उसने  पहचना   नहीं,