Thursday, May 19, 2011

बेडियाँ

उलझे है सभी अपनी ही बेड़ियों में
दूजो की बेड़ियों से फिर भी खफा है,
डाल बेड़ियाँ दूजो के कदमो में,
हर कोई देखो मुश्कुरा रहा है,
लेकिन भूल  सब गए की 
दूसरा छोर खुद से बंधा है
 
आसमां पाने की आतुरता में,
 
दूजो को बेड़ियों में जकड़ दिया,
पंख फडफडा कर  देखो यारों,
खुद तुम्हारे पैरों में कितनी बेड़ियाँ है|
अम्बर पर राज है उनका ,
जिनके साथ ज़माना चला है,
अकेला अम्बर पर अंकित ,
ना किसी का नाम हुआ है ,
छोड़ अपनी नीव
ना कोई ,
 पवन वेग से लड़ सका है ,
बढने की ख्वाहिश  से पहले यारो ,
देखो तुम्हारे पैरों में कितनी बेडियाँ है |

5 comments:

  1. bahut gahan arth sanjoe ek behatreen rachana.

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  2. छोड़ अपनी नीव ना कोई ,
    पवन वेग से लड़ सका है ,

    बहुत बढ़िया....सुंदर रचना

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  3. सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति

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  4. अखिलेश जी,

    क्या बढ़िया लिखा है सच ही तो है....

    "आसमां पाने की आतुरता में,
    दूजो को बेड़ियों में जकड़ दिया,
    पंख फडफडा कर देखो यारों,
    खुद तुम्हारे पैरों में कितनी बेड़ियाँ है|"

    आप कभी मेरे ब्लॉग पर भी जरूर आयें..बहुत बहुत आभार.

    आशु
    http://www.dayinsiliconvalley.blogspot.com/

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