तारो के पार एक
जहान बसता है,
बचपन जिसमे अपने
सपने बुनता है,
उन बचपन की यादों को
लफ्जों में लिखता हूँ,
वो नीम के पीछे का भूत,
वो छप्पर वाली बिल्ली ,
वो बड़ी पहाड़ी वाले डाकू ,
बहुत ही सताते थे|
उन अनदेखे चेहरों
से फिर डरना चाहता हूँ
आज फिर भोलेपन की
पराकाष्ठा को छूना चाहता हूँ|
जहान बसता है,
बचपन जिसमे अपने
सपने बुनता है,
उन बचपन की यादों को
लफ्जों में लिखता हूँ,
आज फिर भोलेपन की
पराकाष्ठा को छूना चाहता हूँ|
प्यारी परी कोई आएगी
मिठाई ,खिलौना,मखमली बिछोना,
हर इच्छा पूरी हो जायेगी,
शरारत ना कोई करना ,
वर्ना खफा हो जायेगी ,
फिर परी को जहन में ला
चैन की नींद सोना चाहता हूँ
आज फिर भोलेपन की
पराकाष्ठा को छूना चाहता हूँ|
वो अंधियारे कमरे का बाबा ,वो नीम के पीछे का भूत,
वो छप्पर वाली बिल्ली ,
वो बड़ी पहाड़ी वाले डाकू ,
बहुत ही सताते थे|
उन अनदेखे चेहरों
से फिर डरना चाहता हूँ
आज फिर भोलेपन की
पराकाष्ठा को छूना चाहता हूँ|
कहाँ बचपन खो गया
क्यूँ तनहा छोड़ गया
क्या फिर अब कभी
इस कड़वे सच से दूर
जिंदगी मिल पायेगी
फिर बचपन को पाने
की राह ढूंढता हूँ
भोलेपन की पराकाष्ठा
को छूना चाहता हूँ