Friday, December 7, 2012

कुछ अलग कर देखे



तमन्ना मन में है यह उठी,
खुद से रूबरू हो कर आज,
एक खूबसूरत ख्वाब देखे,
निगाहों से धोखे खाए कई,
मगर आज निगाहों से ही,
एक धोखा कर कर देखे ,
हवा के संग रेत से चलते रहे,
सोचा आज तूफान बन,
बहने की मस्ती समझ देखे,
रोशन जहान सितारों से हुआ,
चाह हुई की आतिशबाजी से,
आसमान रोशन कर देखे|
कदमो में बेडिया बहुत डाली ,
सोचा आज तोड़ हर बंधन ,
कदमो की असल रफ़्तार देखे ,
अश्क बहाए हर मुश्किल में ,
अब मुश्किल का सामना,
मुश्कुराहट के संग कर देखे,
खुदा की बहुत इबादत कर ली ,
अब जीत का ज़ज्बा लेकर ,
खुद को आजमाकर देखे ,
जिंदगी में कई मोड गुज़रे ,
तकदीर के लिखे से अलग ,
अपनी राह बनाकर देखे  |


Monday, December 3, 2012

इश्क से बढकर है दोस्ती

जिंदगी का हर मोड आशिकी नहीं,
यारो तुम्हारे बिन यह जिंदगी नहीं,
एक मतवाले की तरह जाने क्यूँ,
परछाई को पकड़ने की आस करता था,
जाने क्यूँ पवन को मुट्टी में कैद करने का,
हर दम असफल असंभव प्रयास करता था,
जिंदगी की खुशी तुम्हारी दोस्ती से है,
गम का सागर मिला मुझे, आशिकी से है,
जिसे नूतन अमृत कलश समझा ,
वो तो हलाहल सा विष निकला
काश समझ जाता क्या है असल,
जीवन और कहाँ महज़ दर्पण है,
मेरे अश्को को देख दर्द तुमको है
मेरा महबूब तो दर्द में संग ही नहीं,
काश समय पथ पर पहले खबर होती
जिंदगी का हर मोड आशिकी नहीं,
यारी ही हर कदम है संग होती|
जाने किसने इतने प्रेम ग्रन्थ लिखे ,
जाने कौन इश्क को खुदा कह गए ,
जाने क्यूँ ज़माने में आज भी इबादत ,
यूँ इश्क के खुदा की है होती ,
शायद ज़रूरत है खुदा की उनको,
जिन्हें इश्क पर यूँ एतबार है  ,
सच्ची दोस्ती मिलने पर ,
खुदा की ज़रूरत ही नहीं होती ,
जो दोस्त मिले महबूब में ,
तो जिंदगी में  सुकून होता होगा ,
लड़खड़ाते कदमो को संबल मिलता होगा ,
जिंदगी का हर मोड आशिकी नहीं,
यारो तुम्हारे बिन यह जिंदगी नहीं
यकीन करो  लहू अश्क बहा समझा हूँ
इश्क से बढकर होती है दोस्ती |

Sunday, November 4, 2012

पता नहीं आखिर क्या कहूँ


किसी की आँखें नम है,
किसी का दिल टुटा है,
कोई अँधेरे में खोया
कोई जग से रूठा है,
हर कोई कह रहा है,
ठीक हूँ मैं,खुश हूँ मैं,
मगर जाने क्यूँ मुझे,
हर चेहरे के पीछे
छिपा गम दिख रहा,
हर दिल अपनी दास्तान कह रहा है,
मगर शोर में कोई ना उसे सुन रहा,
तेज है रफ़्तार जिंदगी की इतनी,
की खुद ही की बात ना कोई सुन रहा,
किस और जा रहे है किसको खबर है,
ज़माने का दस्तूर है चलना, बस  यह खबर है,
आखिरी मुलाकात खुद से हुई कब थी,
शायद याद भी ना होगा,
यह बात इस जनम हुई थी,
इसका अंदाजा भी ना होगा,
आखिर क्यूँ है ऐसा की,
तकदीर लिखता माथे का पसीना,
दिल की कलम से ना कोई कागज भीगा,
क्यूँ अंतिम सांस पर भी है पछतावा,
जीवन में आखिर है क्या अपना पाया,
एक लिखी तकदीर ज़माने की थी,
उसी पर खुद को चलता पाया,
दुआ करता हूँ राह में आगे जीवन की,
एक चेहरा बिन गम का मिलेगा,
खुदा मिले ना मिले मुझे मगर,
कोई सच्चा तो मसीहा मिलेगा,
सवाल तब तक रहेगा ज़हन  में|
अभी जो तकदीर में लिखा है,
वो आसूं के संग करता हूँ,
किससे लडूं आखिर में जब,
हर कोई गमगीन बैठा है|

Sunday, October 28, 2012

आखिर क्यूँ

दर्द दिल का मैं जाने क्यूँ दबाए बैठा हूँ,
आँखों में अपनी दरिया छुपाये बैठा हूँ ,
जिसे खुदा से बढकर इश्क किया मैंने,
उसी ने अनजानो की तरह अलविदा किया,
आज टूट कर मैं खुद को खो रहा हूँ,
तन्हाई, बेरुखी बेकरारी क्या होती है,
मुझको ये खबर अब भी नहीं,
शायद मैं अपने अहम पर हुई चोट से,
मिले क्रोध के कारणवश छटपटा रहा हूँ,
शायद आत्म-घृणा से गिरा हुआ हूँ तभी
दर्द दिल का मैं यूँ  दबाए बैठा हूँ,
आँखों में अपनी दरिया छुपाये बैठा हूँ |
मैंने तो हमेशा उसकी मुश्कुराहट की दुआ की,
मैं कैसे उसके अश्को का कारण बन गया ,
ज़माने से हट मेरी चाहत थी मगर क्यूँ ,
उसके हर फैसले में यूँ ज़माना आ गया ,
क्यूँ  मेरी सच्चाई से ज्यादा नकाब की कीमत ,
क्यूँ वफ़ा से ज्यादा दुनियादारी की कीमत ,
क्यूँ मेरे लिए कांटो की राहे सही है मगर ,
ज़माने के लिए चंद फूल कम हो सकते नहीं ,
मुझे खुदगर्ज़ कह यूँ  धिक्कार दिया,
फिर भी क्यूँ जिंदगी की डोर उसे दे रहा हूँ ,
दर्द दिल का मैं यूँ  दबाए बैठा हूँ,
आँखों में अपनी दरिया छुपाये बैठा हूँ |

Saturday, October 27, 2012

दोहरापन


कहाँ घुमती है ये किस्मत,
किस दर पर  है हकीकत,
चमक हर और बिखरी है,
काली अमावस में भी यारो,
मिलती अब तो चांदनी है,
मगर जब नैन बंद होते है,
खुद से होता दीदार है,
पूनम का पूरा चाँद कम है,
ना दिनकर उतना उजियारा है,
कालिमा अंधियारे में ही मेरा,
शायद  हो रहा गुजारा है,
यह दोनों जग एक संग कैसे,
यह समझ ना दिल पा रहा है,
कोई ऐसा चिराग रोशन कर दे,
जो तम और उजार को सम कर दे,
बिखरी है जो बुँदे सुकून की,
उनको समेट जग को अर्पण कर दे|  

Saturday, September 1, 2012

याद


लफ्जों में अपनी जिंदगी को,
यूँ बयां कर सकते नहीं,
कई अक्स ऐसे होते है,
जो ज़हन में जिंदा होते है,
मगर कलम से गुज़र
कलाम में उतरते नहीं|
कई मंज़र दिल की गहराई में,
रह कर अपनी हस्ती बनाये है,
यारों वाकिफ तुम भी हो,
वाकिफ मैं भी हूँ मगर,
हमारे सिवा उनको और कोई,
महसूस कर दिल में रख सकता नहीं,
यादों को यूँ ही संजोये रखना,
क्या जाने कब आँखों के पानी में,
उन मंज़रो का दीदार  हो जाये|

Tuesday, August 14, 2012

क्या ख्वाब था क्या हो गए


एक ही टीस मन में उठती है,
क्या ख्वाब  संजोया था और क्या हो गए,
सोचा था हमने कुछ ज़माने को दे जायेंगे,
दो लम्हे ख़ुशी के, दो पल की मुस्कराहट,
कुछ ज़हन में छपी तस्वीरे छोड़ जायेंगे ,
विदा जब होंगे इस जहान से एक याद बन,
सबके दिलो को उल्लास से भरकर जायेंगे,
मगर ज़माना इतना भी अपना ना हुआ,
बस दर्द भरी यादों से झोली को है भरा,
अब सोचते है खुद को यादो से मिटा जायेंगे,
ख़ुशी का कारण ना बने किसी की तो ना सही,
खौफज़दा ख्वाब बनने का खेल नहीं खेल पाएंगे|

Wednesday, August 1, 2012

विराम

आज खबर हमको हुई,
क्या विराम का अर्थ है,
क्या पीछे मुड़ने का महत्व,
कैसे जुड़े है अतीत भविष्य,
खुद ही की बनाई दुनिया में ,
बढ़ते हुए आगे राहों पर,
मंजिल का महज़ आभास है,
भूलते मकसद मंजिल का  ,
खो जाता  खुद का सपना ,
कितना अजब सफ़र है ये ,
आज हमको खबर हुई,
क्या विराम का अर्थ है।


ठहराव आलस्य का नहीं,
दर्शन-शास्त्र सा  संगी ,
अंधियारे में खोए  उसूलो को ,
 रोशन करने वाला चिराग  है,
आवारा ज़िन्दगी को  दिशा ,
लड़खड़ाते कदमो का सहारा, 
खुद से पहचान का पड़ाव है ,
है आत्ममंथन, अंत नहीं,
ज़माने  की बातों  से परे ,
आज हमको खबर हुई,
 क्या विराम का अर्थ है।। 

Friday, July 27, 2012

मैं


कोई मुझे मसखरा कहता है,
कोई खुशमिजाज़ कहता है,
कोई घमंडी तो कोई
निष्ठूर कहता है |
अलग हूँ मैं सबकी निगाहों में,
किसी की आँखों का कांटा भी हूँ ,
किसी की राह का पत्थर भी हूँ ,
बन हर किसी की जिंदगी का हिस्सा,
आने होने का अहसास कर रहा हूँ |

मेरी पहचान क्या है,
यह सवाल लिए जहन में,
ज़माने के संग चल रहा हूँ ,
कुछ अनजान सवालो में उलझ,
जहरीले  बोल कह देता हूँ ,
मेरी बात का यूँ बुरा ना मानो,
मैं अब भी खुद के कर्मो में,
खुद को खोज रहा हूँ ,

खता जो कभी की मैंने,
दिल से माफ़ी मांगता हूँ,
जिंदगी आसान है अगर,
तो मैं जिंदगी को नहीं जानता हूँ,
साँसों से रिश्ता जुड़ा है,
जमीं का आसरा भी है,
मगर जन्म लेना ही ,
जीवन का आरम्भ नहीं है|
अब मैं जीवन की शुरुवात,
का मौका खोज रहा हूँ|

Sunday, March 25, 2012

सफर तो करना है

खुद के मन पर ना,अब कोई बस रहा,
उनकी एक झलक को व्याकुल हो रहा,
इस कदर तो कभी राह से भटका ना था,
मगर अब राहों की मंजिलो की फ़िक्र नहीं,
भूल दुनियां की हर ज़िम्मेदारी को ,
बस सच और सपनो का जहाँ जोड़ रहा,
कोई शिकायत नहीं मुझको बहकने से,
मगर स्वप्न सदैव आँखों में ठहरता नहीं,
जाग फिर जीवन की राहों पर जाना है,
संग कोई हो ना हो सफर तो करना है|
यहाँ एक ही बात हर शख्स कहता है ,
सपनो की खातिर ज़माने के साथ चलो ,
मगर ज़माना ही सपनो में अड़चन है ,
संग चलूँ ज़माने के तो सपने छूटते है ,
ना संग चलूँ तो कई अपने रूठ जाते है ,
क्या है कोई  तराजू ऐसा जिस पर,
दोनों की अहमियत का तोल कर सकूँ ,
सवालो से भरी जिंदगी का असमंजस है,
लगता है पाना मजिल को आसान ,
मुश्किल मंजिल का चुनाव करना है,
इन्तेजार करती अब भी राहे है,
संग कोई हो ना हो सफर तो करना है|

Wednesday, January 18, 2012

प्याऊ वाली माई

आज वो चेहरा ज़हन में आ गया,
मेरे मुश्कुराते चेहरे से हंसी ले गया,
मन मुझसे आज पूछता है,
क्यूँ तू इतना इठलाता है,
अपनी कामयाबी के ऊपर,
क्या चूका पाया तू अब तक,
उस एक ग्लास पानी की कीमत,
क्या है आज तुझमे वो साहस,
पूरी कर सके  उसकी ज़रूरत,
उस याद के आते ही अब,
खुशियों के संसार में घायल खड़ा हूँ,
तब भी लाचार था अब भी लाचार खड़ा हूँ|

आप मेरी इस कविता का मर्म तभी समझ पाएंगे जब मैं आपको एक छोटी सी कहानी सुनाऊंगा| असल में यह कोई कहानी नहीं है| मेरे बचपन की एक याद है| गर्मीयों के दिन थे| चंद दिनों में गर्मी की छुटियाँ होने वाली थी| मेरे स्कूल के बहार एक चबूतरे पर एक बूढी माई अपने 3-4 मटको में पानी भरकर बैठती थी| कभी पुछा तो नहीं पर उनकी उम्र कम से कम 80 बरस तो ज़रूर रही होगी| हम बच्चो की छुट्टी होने पर वो हमे पानी पिलाया करती थी| हम बच्चे भी उस ठन्डे पानी का मज़ा नहीं छोड़ सकते थे| कभी कभी हम बच्चे उन्हें 1-2 रुपये भी दे दिया करते थे , चूँकि अकाल के समय उस गर्मी में पानी की कीमत सच में होती है और बालमन भी यह समझता है|
एक दिन ऐसे ही मेरी अधिक बोलने की आदत के कारण मैंने उनसे पुछा -" काकी आप रोज पानी लेकर क्यूँ आती हो " तब उनका जवाब था -"बेटा मेरे खाने-पीने के लिए धान, दाल तो मेरे भाई के घर से आ जाता है, मगर मेरा तेरी उम्र का एक पोता है और वो मेरे घर इसीलिए नहीं आता क्यूंकि मैं उसे दूध में बोर्नवीटा नहीं दे सकती| तो मैं तुम्हारे दिए पैसो से बोर्नवीटा खरीदना चाहती हूँ"|
असल में बात यह थी की उस बूढी औरत का बेटा अच्छी नोकरी करता था| उस सुपुत्र को अपनी माँ से और उसकी गरीबी से नफरत हो गयी थी और उसने उन्हें त्याग दिया था| और उसके पोते को इस तरह बहलाया जाता था की दादी के घर पर बोर्नवीटा नहीं मिलेगा| वो औरत बच्चो के चेहरे पर खुशी देखने की ख्वाहिश में अपने पोते के स्कूल के सामने भरी दोपहरी में लोगो को पानी पिलाती थी| असल बात मुझे उस बूढी माई की मौत के वक्त पता चली,चूँकि इत्तेफाक से उनका पोता हमारी चंडाल मंडली (मोहल्ले के बच्चो का समूह) का सदस्य था|


खुदगर्जी से भरे इस ज़माने में,
अगर किसी मोड पर उन लाचार,
हाथो को संबल देना चाहता हूँ ,
ज़माना आतंकियों को कोसता है,
मैं उस ज़माने से प्रश्न करता  हूँ,
तुम्हारे कानून में है आतंकी को,
सजा बहुत ही बड़ी बड़ी ,
क्योंकि ठग लिया लाखो में से,
धरा के एक लाल ने उसको,
कौन है बड़ा मुजरिम बतलाओ,
चढाओ फांसी आतंकी को,
ताकि अगले जनम वो दगा ना करे,
मगर सजा कुपुतो को ऐसी हो,
के फिर आ किसी की कोख में,
कोख को कलंकित ना करे
सार्थक जीवन मेरा होगा तभी
जब  कुछ ऐसा कर सकू
की कोई माँ कुपुत ना जने| 

Tuesday, January 17, 2012

बड़ी मुश्किल से नींद आती है


ख्वाबो की दुनिया में रहने दो,
कुछ पल गमो से दूर ले जाती है,
सच का  भयावह चेहरे को
भूलने की महज एक यही
राह मुझको नज़र आती है,
कुदरत कितनी खूबसूरत है,
इसका अहसास मुझको कराती है,
मुझको तुम जगाना नहीं
बड़ी मुश्किल से नींद आती है|
यहाँ इंसान की कीमत है,
दिल के घावों का मरहम भी है,
यहाँ शहंशाह इंसानियत है,
किसी के मन में हैवान नहीं है, 
दर्द सबका एक सा है यहाँ,
अनजान भी गले मिलते है,
किसी की खुशी में हो शरीक,
यहाँ सच में खुशी मनाई जाती है
मुझको तुम जगाना नहीं 
बड़ी मुश्किल से नींद आती है|
आशियाँ सबका यहाँ मंदिर है,
शक, ईर्ष्या, प्रतिशोध,क्रोध
इनका कोई ज़िक्र ही नहीं ,
इश्वर हर किसी में मौजूद यहाँ,
किसी मूरत की जरूरत नहीं,
ग्रंथो के सार की है समझ,
मगर ग्रन्थ कोई है नहीं ,
बिन धर्म की यह दुनिया,
एक नया धर्म सिखलाती है,
मुझको तुम जगाना नहीं
बड़ी मुश्किल से नींद आती है|
खुले जो नैन फिर वही ,
धमाके,शोर,झूठ का जहान,
फिर रख कदम शवो पर,
आगे बढ़ने का प्रावधान,
कातिलों,चोरों,डाकुओ का,
 होता है जहां  सम्मान,
देख चरित्र-पतन पुत्रो का  
वसुधा खून के आंसू रोती है,
मुझको तुम जगाना नहीं,
बड़ी मुश्किल से नींद आती है|

Sunday, January 15, 2012

समझो सपनो का सच


छोड़ सपनो की दुनिया,
हकीकत में आने का दर्द,
सबको है खबर मगर,
कोई ज़िक्र करता नहीं,
मगर उस दुनिया की छाया
यहाँ लाने की सबको चाहत है,
नहीं कुछ भी असम्भव,
बस एक बार पाने का,
यत्न करने की देरी है|
है यही इस दुनिया खूबी,
हर कोई व्यस्त है अपनी,
जिंदगी की खोज में,
और बेखबर इससे की ,
आखिर खोजता क्या है,
हर राह को देख अब,
यूँ आशा का त्याग नहीं 
बस कर बंद नैन खुद से,
सवाल करने की देरी है|
मंजिल और रास्ता है वही,
जो सपना बनकर आता है,
हमेशा खुशी दे जाता है,
जिसके जाने का गम सताता है,
हर ज्ञानी अज्ञानी है जो,
सपनो से मुख मोड़ता है,
मंजिल जिंदगी की है यही,
हर राही अपना सा हो,
गम भी खुशी से हो,
हर राज़ का सच है यही,
बस सपने समझने की देरी है |

Saturday, January 14, 2012

उबाल

हो गयी ज्वाला शांत भले,
लहू मगर अब भी लाल है,
बहता रगों में यह लावा ,
उतना ही विकराल है|
दहशत पर दया का दान
कब तक दे पाएंगे,
गुनाह को गलती समझ,
कब तक भुलायेंगे,
अभी दिखी है थोड़ी हलचल,
अब तमाशा शुरू होने को है|
एक हाथ धनुष,दूजे में गीता,
बुद्ध कब तक रोक पाएंगे,
सब्र का इम्तिहान लेने वाले,
सिंह को  मेमना समझते है ,
समाधी में लीन शिव को,
लाचार समझने वाले ,
तीसरे नेत्र के अंगार भूले है,
महज साँसों की तेजी से
आई तख़्त में दरारे है,
खनकने दो  कलुषित कनक,
अब तमाशा शुरू होने को है| |
खुद ही अनजान है हम,
अपने बाहुबल से अभी,
तभी नैनो में नीर है,
शुरू गुरुकुल हुआ अब कराने,
शक्ति की सार्थकता का बोध,
रण विजय से बढ़कर लक्ष्य,
है नवनिर्माण का  ज्ञान ,
वर्ना जीतने के लिए जंग ,
तो है  काफी एक हुंकार,
लिखने को नया इतहास
तत्पर है समय की कलम,
बस असल प्रहार होने को है|

Thursday, January 12, 2012

इन्तेज़ार

आखिरी मुलाकात अब भी याद है,
कर खुद को राज़ी किया फैसला,
इज़हार इश्क का उनसे हम करेंगे,
आज दिल को खुली किताब बना देंगे,
हर ख्वाब हर ख्वाहिश हर अरमान,
हर खता का ज़िक्र कर देंगे|
जाने कितनी शायरी करो बेकार है,
कर नहीं सकती वे उनको ज़रा भी बयां,
मेरे अलफ़ाज़ लडखडा कर टूट जाते है,
महज़ उनका ज़िक्र करने भर में,
जाने और कितनी बातें उनसे कहने को,
मन में लिए उन तक पंहुचा,
सलाम दुआ कर जब कहने को हुआ,
वे बोली अभी आती हूँ कुछ पल ठहरो,
पल गुज़रे,दिन गुज़रे,गुजर गए साल कई,
अब भी इतेजार है इज़हार के पल का,
संग लिए बैठा हूँ तोहफा दिल का,
इनकार और इकरार दोनों ही मंज़ूर है,
मोहब्बत का सफर शुरू करने के लिए,
कोई उन तक मेरा पैगाम पंहुचा दे,
की अब भी नज़रे राहों पर टिकी है,
हर पल हलचल का इतेजार कर रही है|

खुद खुदा भी मुझसे हो चूका है खफा,
लौटा दिए  कितने फरिस्ते उसके ,
लेकर आये  जो मौत का पैगाम,
अब पथराई आँखों में है इतेजार ,
कब अपनी साँसों  को दूँ विराम ,
थका इतेजार से अब भी नहीं 
बस इस जिंदगी पर अब हक नहीं| 

Wednesday, January 11, 2012

साहिल

जब हम बीच दरिया में थे,
तो किनारों की ख्वाहिश थी,
थपेड़े खाती कश्ती से रंजिश थी,
देख नीर अपार नैनो में नीर था,
पर इरादा कुछ और था तक़दीर का,
आज धरा पर है कदम मेरे ,
हर ओर हरियाली की चादर ओढ़े,
खुशियों के मृदंग बज रहे है ,
फूलो से आशियाँ सज रहे है,
मगर तन्हाई का आलम है,
सब कुछ है फिर भी,
कुछ कम लगता है,
लहरों की याद सताती है,
कश्ती फिर मुझे बुलाती है,
नहीं अंत मेरी डगर का ,
लगता यह साहिल है,
बाकी है सांस मुझमे ,
दरिया में जाने का साहस है,
है बहुत साहिल जहान  में,
अभी तो बस आगाज़ है|

Tuesday, January 10, 2012

खता

अश्को की सलामी देकर हम,
उनकी राहों से विदा हो जाते,
फिर ना कोई राह मिला दे,
इस खातिर चलना छोड़ देते,
उनके एक अश्क मोती से कम,
कीमत है इस जान की ,
मांग कर तो देखते एक बार,
मुश्कुराते हुए अर्थी पर लेट जाते
बेशक हमे प्यार जताना आता नहीं,
मगर वे हमारे आसूं ही पढ़ लेते|