Sunday, November 4, 2012

पता नहीं आखिर क्या कहूँ


किसी की आँखें नम है,
किसी का दिल टुटा है,
कोई अँधेरे में खोया
कोई जग से रूठा है,
हर कोई कह रहा है,
ठीक हूँ मैं,खुश हूँ मैं,
मगर जाने क्यूँ मुझे,
हर चेहरे के पीछे
छिपा गम दिख रहा,
हर दिल अपनी दास्तान कह रहा है,
मगर शोर में कोई ना उसे सुन रहा,
तेज है रफ़्तार जिंदगी की इतनी,
की खुद ही की बात ना कोई सुन रहा,
किस और जा रहे है किसको खबर है,
ज़माने का दस्तूर है चलना, बस  यह खबर है,
आखिरी मुलाकात खुद से हुई कब थी,
शायद याद भी ना होगा,
यह बात इस जनम हुई थी,
इसका अंदाजा भी ना होगा,
आखिर क्यूँ है ऐसा की,
तकदीर लिखता माथे का पसीना,
दिल की कलम से ना कोई कागज भीगा,
क्यूँ अंतिम सांस पर भी है पछतावा,
जीवन में आखिर है क्या अपना पाया,
एक लिखी तकदीर ज़माने की थी,
उसी पर खुद को चलता पाया,
दुआ करता हूँ राह में आगे जीवन की,
एक चेहरा बिन गम का मिलेगा,
खुदा मिले ना मिले मुझे मगर,
कोई सच्चा तो मसीहा मिलेगा,
सवाल तब तक रहेगा ज़हन  में|
अभी जो तकदीर में लिखा है,
वो आसूं के संग करता हूँ,
किससे लडूं आखिर में जब,
हर कोई गमगीन बैठा है|