Friday, January 8, 2016

इज़हार

हमने तो तोहफे में दिल दिया,
जाने वे उसे क्या समझ बैठे ,
दूसरे नजरानो की तरह ही,
रख किसी कोने में घर के,
दिल की कद्र ना कर सके,
आज तन्हाई में दिल शायद,
उन यादों में मुश्कुराहट खोजता है,
जब लब खामोश थे,
इकरार और इज़हार का द्वन्द्ध था
और उनके दीदार का सहारा था,
आज ना कोई चाहत, नहीं कोई मंजिल,
खुशी है की आशिक तो बने मगर,
भले रूप इश्क का हुआ ऐसा हांसिल|

6 comments:

  1. इकरार और इज़हार का द्वन्द्ध था
    और उनके दीदार का सहारा था,
    अति सुंदर

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  2. इकरार और इज़हार का द्वन्द्ध था
    और उनके दीदार का सहारा था,
    अति सुंदर

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  3. इकरार और इज़हार का द्वन्द्ध था
    और उनके दीदार का सहारा था,
    अति सुंदर

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  4. इकरार और इज़हार का द्वन्द्ध था
    और उनके दीदार का सहारा था,
    अति सुंदर

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  5. इकरार और इज़हार का द्वन्द्ध था
    और उनके दीदार का सहारा था,
    अति सुंदर

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  6. Hi, their colleagues, nice paragraph and nice arguments commented here, I am really enjoying by these.

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