Monday, March 29, 2010

तुमको आना होगा

सरस,स्वच्छ,शांत,सरिता,
जहाँ बहा करती थी,
उसके शीतल,चंचल जल में,
लहूँ कि ललाई उभरने लगी,
फूलों से लड़ी फूलवारियाँ,
अंगारों  से भरने लगी,
मधुर संगीत से भरी वादियाँ,
धमाकों से दहकने लगी,
बहता लहु अब तो हिस्सा
रोजमर्रा की ज़िन्दगी का बनने लगा,
करह,क्रंदन,कसक ने कब से
विचलित करना छोड़ दिया
प्रेम,इंसानियत,करूणा कल्पना लगने लगे
मासूम बच्चे गुड्डे गुड़ियाँ छोड़,
बंदूख,तलवार,तोपों से खेलने लगे,
खरगोश,हिरन की बतियाँ भूल ,
बाघ,लोमड का गाथा गान करने लगे,
बदलते इस चमन में खोई इंसानियत,
लडखडाती अहिंसा संबल चाहती है,
अब बुद्ध,महावीर की याद आती है,
दधिची से त्याग की ज़रुरत सताती है,
धरा के उद्दार की खातिर
तुम्हे अवतरित होना होगा,
हे शिव फिर तुमको अब,
द्वेष से भरा हलाहल पीना होगा|
है आसां बैरी को मुहतोड़ जवाब देना,
जंग में उसे मात देना,
पर यहाँ कूटनीति राजनीती,
यहाँ तक युद्ध कौशल भी विफल हुआ,
सामना जब बैरी से हुआ तो,
 देख उसे बड़ा ही हैरत हुआ,
रणभूमि में दोनों ओर अपने ही थे,
गीता के ज्ञान में यह धर्म युद्ध है,
हम तो पार्थ बनने को तत्पर है,
पर कहाँ सारथी हमारे श्री कृष्ण है,
हे दुनिया की रचना करने वाले
फिर तुम्हे अब रथ चलाना होगा
नाश करने को अराजकता का
पंचजन्या में श्वास फुकना होगा
तुमको अवतरित होना होगा
है गद्दार हमारे  खेवैया ही,
पतवार कहाँ से पार लगे,
लूट खसोट जिनके जीवन,
के है सुसंस्कार बने,
सेना नायक ही हमारे,
दुश्मनों के दास बने,
निज स्वार्थ की खातिर,
देश को है बाँट चुके,
एक ही माँ की दो संतानों को,
चिर शत्रुता के बंधन में बांध चुके,
घाव किसी को भी लगे,
दर्द माँ को होता है,
पार माँ की सिसकियाँ कहाँ ,
यह अमानव जान सके,
इन स्वार्थ सिद्धि से सने,
तख़्त-ताज के लोभियों को,
सच्चाई के दर्पण में इनका,
कलुषित,दानवरूप दिखना होगा,
हे राम तुमको फिर इस धरा,
नव आदर्श स्थापित करना होगा,
जन कल्याण की खातिर 
तुम्हे अवतरित होना होगा|

2 comments:

  1. seems lyk dat d essence of 2dys "kalyug" is in ur poem...

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  2. काल कलुषित कलयुग की
    स्वार्थ सिद्धि से संजोयी
    प्रगाड़ पाप पूंजी संधान की खातिर
    संसार के समक्ष समाधान लाना होगा
    हे ताड़णहार तुम्हे अवतरित होना होगा

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