रेत को देख ख्याल आया,
यहीं तो जिंदगी का सार है ,
रेत के कण की तरह है इंसान,
बंधन देता एक हद तक प्यार है,
जब हद से अधिक प्रेम हो,
तो छूटता अपनों का साथ है,
जो स्नेह की डोरी ना हो,
तो होता ना कोई साथ है,
जो समझ ना सका सीमा को,
तन्हाई ही मिलती हर ओर है,
रहता अंधियारे में निशा के,
भाग्य में ना उसके भोर है,
रेत को देख ख्याल आया,
यहीं तो जिंदगी का सार है|
जब मिलता रेत के कणों में,
नीर निर्माण के पैमानों से ,
बनते किले, महल,आशियाने,
महज मेहनत और ख्वाबो से,
रोशन होता जन्नती जहान,
खुशी और हंसी के दीपो से,
बिखरती नहीं खुशियाँ चंद ,
चांदी और कागज के कतरों से,
मिलती सीख जीवन की,
मंदिरों में, ना
की शमशानो में,
समझना नीर के निर्मल छल को,
ही मानव जीवन का लक्ष्य है ,
जो नीर निर्माण ना करता हो,
उसका पड़ाव अगला नयन है|