Monday, January 14, 2013

रेत और नीर


रेत को देख ख्याल आया,
यहीं तो जिंदगी का सार है ,
रेत के कण की तरह है इंसान,
बंधन देता एक हद तक प्यार है,
जब हद से अधिक प्रेम हो,
तो छूटता अपनों का साथ है,
जो स्नेह की डोरी ना हो,
तो होता ना कोई साथ है,
जो समझ ना सका सीमा को,
तन्हाई ही मिलती हर ओर है,      
रहता अंधियारे में निशा के,
भाग्य में ना उसके भोर है,
रेत को देख ख्याल आया,
यहीं तो जिंदगी का सार है|
जब मिलता रेत के कणों में,
नीर निर्माण के पैमानों से ,
बनते किले, महल,आशियाने,
महज मेहनत और ख्वाबो से,
रोशन होता जन्नती जहान,
खुशी और हंसी के दीपो से,
बिखरती नहीं खुशियाँ चंद ,
चांदी और कागज के कतरों से,
मिलती सीख जीवन की,
मंदिरों में, ना की शमशानो में,
समझना नीर के निर्मल छल को,
ही मानव जीवन का लक्ष्य है ,
जो नीर निर्माण  ना करता हो,
उसका पड़ाव अगला नयन है|   

3 comments:

  1. रेत को देख ख्याल आया,
    यहीं तो जिंदगी का सार है.....sunder upma di hai.....

    ReplyDelete
  2. BlogVarta.com पहला हिंदी ब्लोग्गेर्स का मंच है जो ब्लॉग एग्रेगेटर के साथ साथ हिंदी कम्युनिटी वेबसाइट भी है! आज ही सदस्य बनें और अपना ब्लॉग जोड़ें!

    धन्यवाद
    www.blogvarta.com

    ReplyDelete
  3. वाह...
    जो नीर निर्माण ना करता हो,
    उसका पड़ाव अगला नयन है|
    बहुत खूबसूरत रचना......

    अनु

    ReplyDelete