Friday, March 11, 2011

जाने क्यूँ जिंदगी अलग लग रही है


हर झोंका पवन का मेरे रोम रोम में उल्लास भर रहा
सूरज की हर किरण मुझे जूनून का तोहफा दे रही
शोर में भी एक सरगम मुझे मदमस्त कर रही
हर बीतता पल मुझे अपने वजूद का सुबूत दे रहा
वही आशियाँ, वही आँगन है वही ज़माना भी 
पर जाने क्यूँ आज यह जिंदगी अलग लग रही है
हर बात में एक कशिश हर मोड पर सम्मोहन
अभी ना कोई मंजिल, ना ठिकाना मिला
फिर भी कदमो को ठहरने का बहाना मिला,
लगता है कोई खुशी का सैलाब सा आया है
अंतर में भावो को थाम ना पा रहा हूँ
कलम से भी उनको ना बयां कर पा रहा हूँ
खो रहे अल्फाज़ यहाँ, पर जुबान मस्ती के गीत गा रही है
वही आशियाँ, वही आँगन है वही ज़माना भी 
पर जाने क्यूँ जिंदगी अलग सी लग रही है
हम तो अब भी है वही मदमस्त पंछी
जिनकी उड़ान कुदरत भी ना रोक पाई है
क्या अलग है कल और आज में
क्या जिंदगी सच में कोई तोहफा लायी है
सवालों के भँवर में फँसा हूँ फिर भी
क्यूँ कोई शिकन ना माथे पर आ रही है
वही आशियाँ, वही आँगन है वही ज़माना भी 
पर जाने क्यूँ जिंदगी अलग सी लग रही है
एक दीदार का जब यह असर है
जाने रूबरू होने पर क्या क़यामत होगी
कभी लगता है खुशियों से मतवाला हो जाऊंगा
कभी लगता है मैं भी भीड़ में खो जाऊंगा
मुझे भीड़ से दूर रहने की ख्वाहिश है
पर जिंदगी के जानने की जिज्ञासा
जाने क्यूँ कदमो को उस और ले जा रही है
वही आशियाँ, वही आँगन है वही ज़माना भी
पर जाने क्यूँ जिंदगी अलग सी लग रही है
है जिंदगी वही, वही मैं मनमौजी फिर क्यूँ
बंधिशो में बंधने की बात मन को गुदगुदा रही है
वही आशियाँ, वही आँगन है वही ज़माना भी
पर जाने क्यूँ जिंदगी अलग सी लग रही है

1 comment:

  1. कुछ तो हुआ है .... एहसास को सुन्दर शब्द दिए हैं .....सुन्दर रचना

    ReplyDelete