Wednesday, February 19, 2014

किससे आखिर दुआ करूँ

बनाया भीरु नायक ने भिक्षुक,
कर रहे हर दर फरियाद,
आत्मसम्मान को बेच कर,
जी रहे है जिंदगी आज,
सब होठ सिल बैठे है,
मान ज़ुल्म को भाग्य,
इन रगों का लावा अब,
शीतल नीर सा हो चूका,
मायूसी की चिता से फिर,
जिंदा हो उठने की खातिर,
कोई तो बतला  दो मुझे,
किससे आखिर दुआ करूँ|
लफ्ज़ ही खो चूका हूँ,
ललाट पर है पसीना,
मंथन मन में है यही,
कि किस रह पर चलूँ,
किस दर पर शीश धरुं,
कौन युक्ति करूँ की आखिर,
इन्सान फिर से जाग सके,
चिर तम का यह कलेजा,
रोशन अब जहान हो सके,
कोई तो बतला दो मुझे,
किससे आखिर दुआ करूँ।
बंद पड़े है गिरजे मस्जिद,
फरियाद ना सुने गुरु साहिब,
कहा था धर्म की हानि पर,
जग में फिर आऊंगा में,
अब धर्म ख़त्म होने को है,
फिर भी चिर निद्रा में,
क्यों है आप बंसीधर,
कोई तो बतला दो मुझे,
किससे आखिर दुआ करूँ।

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