Friday, January 8, 2016

जीवन की कशमकश

सरल है बहुत कहना मगर,
मुमकिन नहीं जीना यहाँ,
हर डगर एक सवाल है,
खो गए जवाब जाने कहाँ,
मुश्किलों से विचलित नहीं,
मुश्किलों के लिए विचलित है,
काँटों से भय अब नहीं है,
डर फूलो के कांटे बनने का है,
खोज रहा हूँ में वो बगिया,
जहाँ फूल फिर महक सके,
हर सांस पहेली ना होकर,
साकार स्वप्न की सीडी बने,
ख्वाहिश अब नहीं महलों की,
चाह है बस खोने से पहले,
कुछ ज़वाब मिल सके|

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