Sunday, May 9, 2010

पतझड़

गीत वासंती फूलों के ,
सावन की सोंदर्य गाथा,
हर ऋतु को सम्मान दिया,
पर पतझड़ को भूला दिया |
नग्न धरा नग्न पर्वत पहाड़,
सिर्फ ढांचा बने वृक्ष हज़ार,
उजड़े बाग-बगीचे ,फुलवारियां,
हो गई कुसुम वादियाँ वीरान,
लगे धरती जैसे कोई शमशान,
देख ये सिर्फ क्रोध आता है,
और गुण पतझड़ के हर कोई भूल जाता है|
एक अलग सोंदर्य है पतझड़ का,
सुनहरे तरुदल से सुसज्जित शाखाएं,
सुके पत्तो की चादर ओढ़ी धरा,
पवन के साथ विचरण करते,
वे छोटे छोटे सफ़ेद थोथे,
वे रूप बदलते वृक्ष और मैदान
पर इस सोंदर्य को परख ना कोई पाता है,
और हर गुण पतझड़ का भूला दिया जाता है|
धरती को उपजाऊ बनाने,
जीवन चक्र को पूरा करने,
सुन्दरता का आधार बनाने,
दूजो को सुख देने की खातिर,
कुरूपता की ओढ़नी ओढ़,
 किया पतझड़ ने सोन्दर्य बलिदान,
पर उसके त्याग पर किसका ध्यान  जाता है,
और हर गुण पतझड़ का भूला दिया जाता है| 
जीवन की राह में बढ़ते हुए,
एक पतझड़ सा मोड़ भी आता है,
जिसे बुढ़ापा कहा जाता है,
बचपन,जवानी  के सोन्दर्य से तृप्त हो,
जीवन बुढ़ापे का उपहार पाता है,
पर भूल उस पतझड़ का महत्व,
हर कोई उसे ठुकराता है,
जाने क्यों मोल पतझड़ का ना कोई समझ पाता है,
जीवन का सबसे कीमती तोहफा
इन्सान के साथ ही मौत का हो जाता है
जो ज्ञान पथप्रदर्शक हो सकता था,
तज उसे अँधेरी राह पर,
हर कोई बढ़ जाता है,
पतझड़ सिर्फ आंसू के साथ विदा पाता है,
 हर गुण पतझड़ का भूला दिया जाता है|