Wednesday, April 28, 2010

कस्तूरी की तड़प

क्या कसूर कस्तूरी का|
विचरण जो वीरान वनों में करता|


पल एक चैन जीवनभर नहीं
अजब है  उसकी कहानी
निरपराध की तड़प है या तलब 
पर इस असंतोष की सजा है उसे पानी
बस इसीलिए हर दम आहें वो भरता 
विचरण वो वीरान वनों में करता|

विश्राम कभी लिया नहीं
राह में कभी रुका नहीं
थककर कभी डगा  नहीं
लक्ष्य कभी भुला नहीं
सफलता चाह में अनजानी  राह पर चलता
भर साहस मन में  विचरण वो वीरान वनों में करता|

जग के हर रस्ते को देख लिया
हर राज़ को जाँच लिया 
हर किसी से सलाह करी
हर किसी से अपना गम बयां किया
संग हर दम असफलता का मलाल रहता 
यही दर्द लिए विचरण वो वीरान वनों में करता|

प्रकृति का हर फूल टटोला
हर घाट का पिया पानी
मादकता जो उस गंध में
हर मदिरा उसके आगे पानी
उसी मादक स्त्रोत की खोज करता
विचरण वो वीरान वनों में करता|
वह पाने की उसने ठानी
जिसका वो खुद स्वामी
अंतर में जो झांक लेता
तो पा सत्य को वो  लेता
राज़ यह समझ कस्तूरी कैसे पाता
मानुष ही नहीं जिसे समझ अब तक सका

शायद यही कसूर कस्तूरी का
विचरण जो वीरान वनों में करता|

Wednesday, April 14, 2010

निजात

इस ज़ख्म की दवा  ना कर,
और दर्द की दुआ कर ले
इन घावो के भरने का नहीं
गहरे होने का उपाय कर दे
इस नासूर की कसक भुलाने को
ऐ ज़िन्दगी मौत का तोहफा दे दे
ना किसी का साथ ना सांत्वना
रंग बिरंगा माहौल  नहीं 
ना खुशियों की सौगात चाहता हूँ
ऐ बेवफा ज़िन्दगी,
मैं तुझसे निजात चाहता हूँ
गए नैन भुल आँसुओं  का रस,
विचलित नहीं करता दर्द भी कमबख्त,
श्वास में प्राणों का संचार नहीं,
इस निरह जीवन का कोई सार नहीं,
मेरे लक्ष्यहीन सफ़र को अब विराम दे दे,
ऐ ज़िन्दगी मौत का तोहफा दे दे |
हर कदम पर स्वार्थ से सने,
दानवो से बदतर मानव खड़े है,
इंसानियत की समाधि पर,
खुद ब्रह्मा  भी रो पड़े है,
इस पाखंडी दुनियां को छोड़,
जा सत्य की धरा पर,
शिव से तांडव की गुहार करना चाहता हूँ ,
ऐ ज़िन्दगी में तुझसे निजात चाहता हूँ| 

इश्क

बन अश्क आँखों से लहू बहा करता है,
तो कभी रोम रोम मुस्कुरा उठता है,
जाने कैसा भी मंज़र हो,
दिल तुम ही  से वफ़ा करता है,
जब ख्याल खुदा का आता है,
जहन में तेरा ही अक्स उभरता है,
हैरत में हूँ मैं भी,
पर शायद यही इश्क हुआ करता है,
नफा नुकसान का ना हिसाब रखता है,
कसमो वादों से तौबा यह करता है,
किसी  डोर से बंधा लगता है,
पर जाने यह बंधन क्यों सुहाना लगता है,
दर्द देता है फिर भी 
प्यारा यह फ़साना लगता है,
हैरत में हूँ मैं भी 
पर शायद यही इश्क हुआ करता है|
सोच थम जाती है,
सिर्फ एक रटन लग जाती है,
कंकरों से बनी माला भी,
रत्नों से अधिक भाती है,
नफरत,द्वेष,ईर्ष्या सी बातें,
जहन में आ ही नहीं पाती है,
बातें है कई पर समय कम पड़ जाता है,
अक्सर खुद ही को वक्ता 
खुद ही को श्रोता बनाना पड़ता है
हैरत में हूँ मैं भी
पर शायद यही इश्क हुआ करता है|

Tuesday, April 6, 2010

साथ

क्यूँ यूँ खफा है ज़िन्दगी,
चंद लम्हों का ही तो साथ है,
क्या रूठना ओर मानना,
कुछ पल की ही तो बात है,
सफ़र हंसी हो या गम से भरा,
अब यह अपने ही तो हाथ है,
क्यूँ शिकवा शिकायत करे,
क्या जंग से होना प्राप्त है,
क्या हिसाब मुस्कराहट,
और आंसुओ  का रखना
चंद लम्हों का तो साथ है


जीत-हार,सुख-दुःख,
पाना-खोना,मिलना-बिछड़ना,
इन सबका ना कोई सार है,
हर लम्हे में जीवन का पान कर लूं,
वरना जाने क्या उस पार है,
कल के लिए क्यूँ व्यथित हो,
जब आज में ही जीवन का सार है,
क्यूँ खफा है तु ज़िन्दगी,
चंद लम्हों का तो  साथ है

किसका घमंड कैसा अहम,
कैसा पुण्य क्या धरम,
व्यर्थ की विधाए है,
व्यर्थ  की ये बात है,
प्रेम की वाणी बोलो ,
प्रेम ही हर ज़ख्म का इलाज है,
दूजो का दर्द देख,
अश्रुधरा से जो भूमि भीगी,
वही सबसे ऊँचा मंदिर,
सबसे बड़ी मजार है,
क्यूँ खफा है ज़िन्दगी,
चंद लम्हों का ही तो साथ है|