Sunday, August 7, 2011

मेरी परिधि

मेरे परो की क्षमता को,
मापदंडो से ना परखो तुम,
मेरे ख्वाबो की उड़ान को,
मेरे कृत्यों से ना नापो तुम,
मैं पंछी  मतवाला हूँ
तुम्हारी परिधि का दास नहीं,
प्रेम परिधि से बंधा हूँ,
पर यह ना समझो मुझे,
मेरी परिधि की पहचान नहीं|

अभी खामोश हूँ मैं ,
नहीं कोई हरकत है परो में,
लगता हिम सा शीत अंतर,
बेजान लगते है इरादे मेरे,
देख  मुझे ना उपहास करो ,
जग कल्याण की खातिर,
है  चिर समाधी धरी मैंने ,
है दिनकर सा ताप मुझमे,
हूँ अनंत का वारिस  मैं ,
दिखलाता हूँ  नहीं मगर 
है मेरी परिधि अनंत से परे|
निर्बलता की मूरत नहीं ,
विनाश का पर्याय हूँ,
थमा निस्वार्थ प्रेम बंधनों से,
नहीं सहस्त्र शस्त्र शक्ति से ,
मेरे शिव को ना ललकारो तुम  ,
कहीं तांडव सा विनाश ना हो,
रोको अपने वारो को तुम ,
कहीं टूट ना प्रेम बंधन जाये,
करो सम्मान अपनी परिधि का,
कहीं मेरे पर ले मुझे
मेरी परिधि ना पहुच जाये|

Saturday, August 6, 2011

थकी जिंदगी की ख्वाहिश

कभी जिंदगी मुस्कुराती थी
कभी जिंदगी रुलाती थी
कभी धुप-छाँव से खेलाती थी
पार आज एक ख़ामोशी है
तन्हाई के आगोश में
खुद सहारे को तरसती
रेत के घरोंदे को तकती
कुछ नहीं बस इन्तेज़ार
कब बदलते मौसम में
यह पलकें नैनो का
पर्दा करना बंद कर दे|

यादों के सागर में खोयी
 खुद  ही के  भंवर में गुम
खुद के वारो से हो घायल
थके राही सी मायूसी लिए
हर पल  बस  यही दुआ
कुछ खुशहाल यादों की
तस्वीर कर खुद पर अंकित
यह पलकें नैनो का
पर्दा करना बंद कर दे|

बिन मकसद बिन राह,
बिन किसी ख्वाहिश अब,
रिश्तों की रेशमी डोरियों की ,
मजबूरी के बंधनों में बंधे,
कुछ टूटे रेशमी धागों में ,
कुछ खोजती कुछ सोचती,
लिए इंतज़ार  संग की आखिर ,
कब ख़ामोशी  को तोड़,
यह पलकें नैनो का
पर्दा करना बंद कर दे|