Monday, June 28, 2010

ख़ुशी के सुर झूम जाना है

बहुत हुआ आज ना आंसू  बहाना है,
आज ना कोई दर्द का गीत गाना है,
लिखना ना आज किसी का गम मुझे,
आज ख़ुशी के सुर में झूम जाना है ,
ना आज कोई वीरान रह नज़र में,
ना कोई कांटें डगर में,
ना अब टूटे दिल का हाल सुनाना है,
बहुत हुआ आज ख़ुशी के सुर में,
मदमस्त हो झूम जाना है|
मित्र,साथी, दोस्त ,सखा,
अपना पराया छोटा और बड़ा,
सभी का एक सुर में कहना  है,
गम ज़िन्दगी का लिख ,
आंसू  से पन्नो को सींच ,
कलम की धार से दुनियां पर,
वार कर आखिर क्या पाना है,
बहुत हुआ आज ख़ुशी के सुर में,
मदमस्त हो झूम  जाना है,
आज पंछियों  के बसेरे,
उनके घोसलों के उन,
सुन्दर ,सुकोमल शिशुओ,
के प्रीत भरे शोर को सुन ,
उनकी और बढ़ते नाग रूपी
काल को भुल जाना है,
बहुत हुआ आज ख़ुशी के सुर में
मदमस्त हो झूम जाना है|
कल कल करती नदियों,
 साहिल के सर्पीले  मोड़ों,
हवा के उन शीतल झोंको ,
प्रकति के अपार तोहफों,
के गीत गुण गुनाते हुए ,
भूख प्यास से मरे उन कंकालों को
अब मुझे नकार जाना है|
बहुत हुआ आज ख़ुशी के सुर में,
मदमस्त हो झूम जाना है|
हसीना की जुल्फों में खोकर,
लिखूं  सोन्दर्य की निशनियाँ,
हो गीत सावन के  होठों पर,
बोलूं  तितलियों की जुबनियाँ,
छोड़ रक्त से सनी वादियाँ,
प्रेम की रित पर,
अपने मनमीत पर,
अब मुझे भी कलम चलाना है,
बहुत हुआ आज ख़ुशी के सुर में,
मदमस्त हो झूम जाना है|

 मैं शतुरमुर्ग बन लिख गीत
प्यार,सोन्दर्य के देता  हूँ |
दर्द देख मोड़ आँख लेता हूँ|
ख़ुशी के सुरों  को सुना
खुशियाँ बिखेर देता हूँ |
आज मैं भी लिख ख़ुशी के गीत
मदमस्त हो झूम  लेता हूँ

Sunday, June 27, 2010

दर्द की नीव

दर्द की आधार शिला पर,
आंसुओ की भीगी माटी से,
जोड़ गम के पत्थरों को,
सुखों का मंदिर बनता है,
जीवन में आसां कुछ नहीं,
वो सबके साथ खेलता है|
ले लोभ लालसा की ललक,
प्राय: पतित प्रोयोजन पर,
  वो मंदिर तोड़ दिया जाता है,
और नव निर्माण में फिर से,
वही दर्द,वही गम ज़िन्दगी में 
अवतरित हो जाता है,

लांछन किसी पर लगा,
दोष मढ़ किसी पर ,
खुद को दोषमुक्त समझ,
दुनियां से हर कोई खफा होता है ,
दूध के धुले है सब,
बुरा होने को बस खुदा बच जाता है|
कोई दुष्ट,कोई मतलबी,
कोई बुरा बन जाता है,
अपने दुखो की गठरी,
किसी और को दे ,
बढती राहों में तनहा
सुख भोगना चाहता है,
आसाँ राहों की खातिर सच्चा कर्तव्य,
ताक़ पर रख दिया जाता है|
कोई नहीं समझता की सुखो का मंदिर
दर्द की नीव पर ही बनता है |

Saturday, June 26, 2010

असमंजस ज़िन्दगी का

बदलते युग में हर कदम पर,
ज़िन्दगी एक सवाल से टकराती है,
ध्येय क्या है ज़िन्दगी का,
क्या राज है खुदा की खुदाई का,
क्यूँ किसी को दर्द,
किसी को रंजिशो का संसार,
तो किसी को सुख-समृद्धि,
किसी को प्रेम का उपहार दिया,
क्यूँ दर्द दे भी मुस्कुराती है, 

रह खामोश सवालों पर जिंदगी,
जाने क्या क्या सिखलाती है| 

क्या अंतर  है दर्द,और ख़ुशी की राहों में,
क्यों अंतर है अपने और परायों में ,
क्यों हर प्रेम में एक सा सोन्दर्य नहीं,
क्यूँ हर फूल माली को मनमोहक नहीं,
क्यूँ किसी शाख पर कईयों का बसेरा,
तो किसी पर वीराने का पहरा है,
क्यूँ हर शाख आशियाँ नहीं बन पाती है, 
हो खामोश इस पर भी,
जाने क्यूँ ज़िन्दगी इठलाती है|
संतों की वाणी में,
कवियों की लेखनी में ,
वृद्धो की आँखों के अनुभव में,
प्रकति के कोतुहल में,
सुना है जवाब बसा है,
पर उसे कोई समझ ना सका है,
दर्द के असीम सागर में,
क्यूँ सुख की महीन रेखा है,
क्यूँ यह धुप छाँव का खेल रचाती है, 
गम और ख़ुशी की आँख मिचोली में,
जाने क्यूँ ज़िन्दगी हमे सताती है|
सवाल है कई पर,
रह खामोश इस तरह,
जाने जिंदगी क्या सिखाती है |

Wednesday, June 23, 2010

मोहब्बत की ज़िन्दगी

कुछ ख्वाब कुछ ख्वाहिशे,
कुछ यादें कुछ रंजिशे,
कुछ दर्द  कुछ अनकहीं  बातें,
वो छलकते पैमाने,वो टूटते पैमाने,
वो प्यासी मरुभूमि,वो तपती मरुभूमि,
सबका मांझी फैसला करता है,
पर किसी की एक मुस्कराहट ही काफी है,
मांझी के कपट को छलने के लिए,
बस याद  ही काफी है ,
यह ज़िन्दगी जीने के लिए|
खुदा की खुदाई से कोई शिकवा नहीं है,
उनकी बेवफाई से भी कोई शिकायत नहीं,
 ज़िन्दगी की तो चाह  ही कब की,
हमे तो मौत की भी ख्वाहिश  नहीं,
उनकी बस एक ख़ुशी की खातिर,
गमो का सागर भी  पीते हुए, 
हर पल दुआ कर सके उनके लिए,
इतना ही काफी है,
यह जिंदगी जीने के लिए|
उनकी राहों  के कांटे सभी,
हम अपनी झोली में समेटे,  
उनको दर्द दे उन हवाओ को,
बन पर्वत खुद पर रोके, 
वे हमारे हो ना सके ,
ये कसक तो है मगर,
हम वफ़ा कर उनसे,
सारी खुशियाँ जुटा ले उनके लिए,
बस  यही  ख्वाहिश  है,
यह ज़िन्दगी जीने के लिए|