Wednesday, May 4, 2016

काश हम भी इंसान होते

यहाँ हो रहे बस मौत के सौदे,
इस हैवानी खेल को देख हम ,
बस  इतनी  सी दुआ करते,
काश हम भी इंसान होते।

यूँ तो कोई नयी बात नहीं है,
इंसानियत तो बिकती ही है,
कभी तो लुटेरों का वार था,
कभी व्यापारी हथियार था,
कभी शहंशाह का मन था,
कभी कबीलों का द्वंद्व था,
वजह अलग अंजाम वही है,
हर मोड़ पर बलि चढ़ी है,
यूँ ही तकदीर पर रोते रोते,
बस  इतनी  सी दुआ करते,
काश हम भी इंसान होते।
क्या फायदा इस समाज का,
क्या मोल है इस देश का,
जब अलग अलग है कीमत,
हर इंसान की ज़िन्दगी की,
अर्थ , सत्ता और शोहरत, 
ऊँचे दर्जे की नीलामी है,
स्वेद, श्रम से साधरण जीवन,
मृत होने की निशानी है,
थक गए यूँ ज़िन्दगी खोते खोते,
बस  इतनी  सी दुआ करते,
काश हम भी इंसान होते।
लाखों यत्न कर लिए मगर,
असल में यह खेल क्या है,
समझ बिलकुल आता नहीं,
ग़मगीन प्रजा पर कर शासन,
कैसे तुम आखिर सम्राट हुए,
जब तक भूखा एक भी जन,
कैसे सुकून हो एक भी क्षण,
 शायद परिभाषा ही है गलत,
राजधर्म और राजनीती की,
थक गयी है अब इंसानियत,
स्वार्थी ज़िन्दगी को ढ़ोते ढोते,
अब  इतनी सी दुआ है करते,
की काश हम भी इंसान होते।