Saturday, May 28, 2011

लहू सरिता

सोच कर देखो तो यारो
लहू किस काम आया है,
धमनियों  में बहते लावा में
किस बात से उफान आया है
प्रेम के भावो की जगह क्यूँ
द्वेष की काली छाया है
आज मुस्कुराती कुदरत में क्यूँ
खमोशी का मौसम आया है
सोच कर देखो यारो
लहू किस कम आया है|
बह रहा लहू राहों पर
बन नफरत की कहानी
सूख गया आँखों में ही
बन दर्द की निशानी
कहता  लहू खुद लहू से
मिल मुझमे तुने व्यर्थ
कर दी मेरी क़ुरबानी
बार-बार लहू की पुकार करती
जाने ये कैसी प्यासी सरिता है |
सोच कर देखो यारो
लहू किस काम आया है|

Thursday, May 19, 2011

बेडियाँ

उलझे है सभी अपनी ही बेड़ियों में
दूजो की बेड़ियों से फिर भी खफा है,
डाल बेड़ियाँ दूजो के कदमो में,
हर कोई देखो मुश्कुरा रहा है,
लेकिन भूल  सब गए की 
दूसरा छोर खुद से बंधा है
 
आसमां पाने की आतुरता में,
 
दूजो को बेड़ियों में जकड़ दिया,
पंख फडफडा कर  देखो यारों,
खुद तुम्हारे पैरों में कितनी बेड़ियाँ है|
अम्बर पर राज है उनका ,
जिनके साथ ज़माना चला है,
अकेला अम्बर पर अंकित ,
ना किसी का नाम हुआ है ,
छोड़ अपनी नीव
ना कोई ,
 पवन वेग से लड़ सका है ,
बढने की ख्वाहिश  से पहले यारो ,
देखो तुम्हारे पैरों में कितनी बेडियाँ है |