सोच कर देखो तो यारो
लहू किस काम आया है,
धमनियों में बहते लावा में
किस बात से उफान आया है
प्रेम के भावो की जगह क्यूँ
द्वेष की काली छाया है
आज मुस्कुराती कुदरत में क्यूँ
खमोशी का मौसम आया है
सोच कर देखो यारो
लहू किस कम आया है|
लहू किस काम आया है,
धमनियों में बहते लावा में
किस बात से उफान आया है
प्रेम के भावो की जगह क्यूँ
द्वेष की काली छाया है
आज मुस्कुराती कुदरत में क्यूँ
खमोशी का मौसम आया है
सोच कर देखो यारो
लहू किस कम आया है|
बह रहा लहू राहों पर
बन नफरत की कहानी
बन नफरत की कहानी
सूख गया आँखों में ही
बन दर्द की निशानी
कहता लहू खुद लहू से
बन दर्द की निशानी
कहता लहू खुद लहू से
मिल मुझमे तुने व्यर्थ
कर दी मेरी क़ुरबानी
कर दी मेरी क़ुरबानी
बार-बार लहू की पुकार करती
जाने ये कैसी प्यासी सरिता है |
सोच कर देखो यारो
लहू किस काम आया है|
जाने ये कैसी प्यासी सरिता है |
सोच कर देखो यारो
लहू किस काम आया है|