उलझे है सभी अपनी ही बेड़ियों में,
दूजो की बेड़ियों से फिर भी खफा है,
डाल बेड़ियाँ दूजो के कदमो में,
हर कोई देखो मुश्कुरा रहा है,
लेकिन भूल सब गए की
दूसरा छोर खुद से बंधा है
आसमां पाने की आतुरता में,
दूजो को बेड़ियों में जकड़ दिया,
पंख फडफडा कर देखो यारों,
खुद तुम्हारे पैरों में कितनी बेड़ियाँ है|
दूजो की बेड़ियों से फिर भी खफा है,
डाल बेड़ियाँ दूजो के कदमो में,
हर कोई देखो मुश्कुरा रहा है,
लेकिन भूल सब गए की
दूसरा छोर खुद से बंधा है
आसमां पाने की आतुरता में,
दूजो को बेड़ियों में जकड़ दिया,
पंख फडफडा कर देखो यारों,
खुद तुम्हारे पैरों में कितनी बेड़ियाँ है|
अम्बर पर राज है उनका ,
जिनके साथ ज़माना चला है,
अकेला अम्बर पर अंकित ,
ना किसी का नाम हुआ है ,
छोड़ अपनी नीव ना कोई ,
पवन वेग से लड़ सका है ,
ना किसी का नाम हुआ है ,
छोड़ अपनी नीव ना कोई ,
पवन वेग से लड़ सका है ,
बढने की ख्वाहिश से पहले यारो ,
देखो तुम्हारे पैरों में कितनी बेडियाँ है |
bahut gahan arth sanjoe ek behatreen rachana.
ReplyDeleteछोड़ अपनी नीव ना कोई ,
ReplyDeleteपवन वेग से लड़ सका है ,
बहुत बढ़िया....सुंदर रचना
सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअच्छी रचना।
ReplyDeleteअखिलेश जी,
ReplyDeleteक्या बढ़िया लिखा है सच ही तो है....
"आसमां पाने की आतुरता में,
दूजो को बेड़ियों में जकड़ दिया,
पंख फडफडा कर देखो यारों,
खुद तुम्हारे पैरों में कितनी बेड़ियाँ है|"
आप कभी मेरे ब्लॉग पर भी जरूर आयें..बहुत बहुत आभार.
आशु
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