Sunday, October 28, 2012

आखिर क्यूँ

दर्द दिल का मैं जाने क्यूँ दबाए बैठा हूँ,
आँखों में अपनी दरिया छुपाये बैठा हूँ ,
जिसे खुदा से बढकर इश्क किया मैंने,
उसी ने अनजानो की तरह अलविदा किया,
आज टूट कर मैं खुद को खो रहा हूँ,
तन्हाई, बेरुखी बेकरारी क्या होती है,
मुझको ये खबर अब भी नहीं,
शायद मैं अपने अहम पर हुई चोट से,
मिले क्रोध के कारणवश छटपटा रहा हूँ,
शायद आत्म-घृणा से गिरा हुआ हूँ तभी
दर्द दिल का मैं यूँ  दबाए बैठा हूँ,
आँखों में अपनी दरिया छुपाये बैठा हूँ |
मैंने तो हमेशा उसकी मुश्कुराहट की दुआ की,
मैं कैसे उसके अश्को का कारण बन गया ,
ज़माने से हट मेरी चाहत थी मगर क्यूँ ,
उसके हर फैसले में यूँ ज़माना आ गया ,
क्यूँ  मेरी सच्चाई से ज्यादा नकाब की कीमत ,
क्यूँ वफ़ा से ज्यादा दुनियादारी की कीमत ,
क्यूँ मेरे लिए कांटो की राहे सही है मगर ,
ज़माने के लिए चंद फूल कम हो सकते नहीं ,
मुझे खुदगर्ज़ कह यूँ  धिक्कार दिया,
फिर भी क्यूँ जिंदगी की डोर उसे दे रहा हूँ ,
दर्द दिल का मैं यूँ  दबाए बैठा हूँ,
आँखों में अपनी दरिया छुपाये बैठा हूँ |

Saturday, October 27, 2012

दोहरापन


कहाँ घुमती है ये किस्मत,
किस दर पर  है हकीकत,
चमक हर और बिखरी है,
काली अमावस में भी यारो,
मिलती अब तो चांदनी है,
मगर जब नैन बंद होते है,
खुद से होता दीदार है,
पूनम का पूरा चाँद कम है,
ना दिनकर उतना उजियारा है,
कालिमा अंधियारे में ही मेरा,
शायद  हो रहा गुजारा है,
यह दोनों जग एक संग कैसे,
यह समझ ना दिल पा रहा है,
कोई ऐसा चिराग रोशन कर दे,
जो तम और उजार को सम कर दे,
बिखरी है जो बुँदे सुकून की,
उनको समेट जग को अर्पण कर दे|