Saturday, August 6, 2011

थकी जिंदगी की ख्वाहिश

कभी जिंदगी मुस्कुराती थी
कभी जिंदगी रुलाती थी
कभी धुप-छाँव से खेलाती थी
पार आज एक ख़ामोशी है
तन्हाई के आगोश में
खुद सहारे को तरसती
रेत के घरोंदे को तकती
कुछ नहीं बस इन्तेज़ार
कब बदलते मौसम में
यह पलकें नैनो का
पर्दा करना बंद कर दे|

यादों के सागर में खोयी
 खुद  ही के  भंवर में गुम
खुद के वारो से हो घायल
थके राही सी मायूसी लिए
हर पल  बस  यही दुआ
कुछ खुशहाल यादों की
तस्वीर कर खुद पर अंकित
यह पलकें नैनो का
पर्दा करना बंद कर दे|

बिन मकसद बिन राह,
बिन किसी ख्वाहिश अब,
रिश्तों की रेशमी डोरियों की ,
मजबूरी के बंधनों में बंधे,
कुछ टूटे रेशमी धागों में ,
कुछ खोजती कुछ सोचती,
लिए इंतज़ार  संग की आखिर ,
कब ख़ामोशी  को तोड़,
यह पलकें नैनो का
पर्दा करना बंद कर दे|

10 comments:

  1. गहन भाव उकेरे हैं रचना में .. नैराश्य भाव दिखाई दे रहा है ...

    रचना अच्छी लगी

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  2. बेशक ये पलकें नैनों का पर्दा बंद कर दें.. बेहद खूबसूरत।

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  3. थकी जिंदगी की ख्वाहिश....बहुत गहन विषय जिस पर आपने बहुत ही अच्छा लिखा है....

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  4. गहन अभिव्यक्ति... सादर शुभकामनाएं...

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