Monday, May 4, 2009

क्यों हैं तू विचलित इतना

क्यों हैं तू विचलित इतना
ये घडी बीत जाती हैं
थी जो मस्ती ज़िन्दगी में
वो फिर लौट आनी हैं
ये जो गम हैं तुझ पर आया
ये कुछ पल की कहानी हैं
बढ़ता जा तू अपनी राह
मंजिल तुझे अब पानी हैं
क्यों हैं तू विश्वास खोता
ये बस एक परेशानी हैं
ये हैं समय का पलडा
ये तो खुदा की मेहरबानी हैं
हो न जो बाधा राहो में
तो फिर क्या ये जिंदगानी हैं
किस्मत को दोष देना तो
एक पराजित की वाणी हैं
लड़कर जिसने भाग्य से
भाग्य रेखा बदल डाली
विजय बनती उपहार उसका
किस्मत बनती दासी हैं
और उसकी शौर्य गाथा जन जन की ज़ुबानी हैं
हारा वो हैं जिसने हाथ हिम्मत का छोडा
थाम ले हाथ हिम्मत का
वो तेरी हमराही हैं
जिन्दगी आसां हैं ऐसा तो मैं नहीं कहता
पर कौन हैं ऐसा दुनिया में जो कोई गम नहीं सहता
गम के अंधियारे में भी तुझे जोत जलानी हैं
हैं जो ज्योति अंतर में वो सतह पर लानी हैं
गम थोडी आग नहीं और बाकि बस धुआं हैं
दुनिया में जीता वही हैं जिसने ये बात जानी हैं
आगे बढ़ और प्रण कर
कि बन जायेगा तू वो कुआँ
जिसमे आग से लड़ने को हिम्मत का पानी हैं
रखना शक्ति अपनी बाहों में
फिर आग खुद ही बुझ जानी हैं
बढ़ता जा तू अपनी राह पर
तेरी मंजिल तुझ ही को पानी हैं
क्यों हैं तू विचलित इतना
ये घडी बीत जानी हैं...............

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