Sunday, January 24, 2010

जीवन की उस राह पर जहाँ में टूट सा गया था :)

हर  राह  पर  ठोकर  खाई ,
हर किसी ने फरेब कर ,
 घाव कई पीठ  पर दिए ,
टुकड़े लाखों दिल के किए,
हो गए बेगाने जो अपने थे,
तोड़ दिए ख्वाब  जो संजोये हमने थे,
ज़िन्दगी बोझ सी बन गई
ज़ीने की कोई वजह  नज़र नहीं आती 
तब दूर  अंधियारे आकाश से 
एक रोशनी जीने की आस दे गई
जैसे पतझड़ में  खड़े लाचार  वृक्ष को 
बसंती हवा नव जीवन  दे गई,
जैसे ग्रीष्म से प्यासी धरा को,
सावनी घटाएँ तृप्ति दे गई,
समझ अनजानी सी आ गई,
ज़िन्दगी की पहेली वो सुलझा गई,
कभी  लगता है खुद मेरी तकदीर ,
वो रूप ले मुझे सिख दे गई,
तोह कभी खुदरत का करिश्मा लगता है,
पर मुझे एक नयी ज़िन्दगी दे गई 
....................................
कभी  ख़त्म  होती नहीं दिल की उलझने  
हर लम्हा खुद में एक उलझन
जो इंसा उलझन से डर गया 
जीवन उसने क्या जीया 
समझ खुद को पाया नहीं
अपनी क्षमता   को उसने  पहचना   नहीं,

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