किसके गुनाहों की सजा,
मेरा देश भुगत रहा है,
वो धरा जिसे प्रकृति ने
हर सम्पदा प्रदान की,
जहाँ सभ्यता के अंकुर
वट-वृक्ष में बदले,
क्यूँ आज वही देश
ना सभ्य है ना समृद्द,
क्यूँ धुंधला भविष्य और
लहू-लज्जा से सना अतीत,
क्यूँ नीर बहाती है आज
बहु बेटियाँ हर घर में,
क्यूँ सांझ भी अब यहाँ
सवेरे का सपना बनी है,
क्यूँ जिसे दिनकर बन
राहों को सरल करना था,
आज खुद गुमराह हुआ है
कोई बतला दे मुझे बस इतना
किसके गुनाहों की सजा,
मेरा देश भुगत रहा है|
जवाब कई उभरे सवालो पर,
मेरा देश भुगत रहा है,
वो धरा जिसे प्रकृति ने
हर सम्पदा प्रदान की,
जहाँ सभ्यता के अंकुर
वट-वृक्ष में बदले,
क्यूँ आज वही देश
ना सभ्य है ना समृद्द,
क्यूँ धुंधला भविष्य और
लहू-लज्जा से सना अतीत,
क्यूँ नीर बहाती है आज
बहु बेटियाँ हर घर में,
क्यूँ सांझ भी अब यहाँ
सवेरे का सपना बनी है,
क्यूँ जिसे दिनकर बन
राहों को सरल करना था,
आज खुद गुमराह हुआ है
कोई बतला दे मुझे बस इतना
किसके गुनाहों की सजा,
मेरा देश भुगत रहा है|
कहीं राजनीती के स्वार्थ,
कहीं व्यापारी का लालच,
कहीं पिछडो के आलस्य,
कहीं संकीर्ण धर्म पर आरोप,
किसी ने जात-पंथ,लिंग भेद ,
किसी के क्षेत्रवाद पर कटाक्ष,
किसी ने विदेशियों कुटिलता,
किसी ने भाग्य को दोषी कहा|
मगर सवाल अब भी वही है,
जवाब अब भी कहीं नहीं है
क्या कमी आखिर राह गयी,
कौनसी भावना खत्म हुई,
क्यूँ राजनीती कलंकित,
क्यूँ स्वार्थसिद्धि प्रबल हुई,
शायद दोषी है वो शिक्षक,
जो चरित्र अपने विद्यार्थी में
देश प्रेम के ना सींच सका,
मौलिकता का पतन शायद,
विद्याध्ययन से ही शुरू हुआ,
जागो विश्व गुरु के गुरु-वर,
देश की पुकार सुनो,
ज्ञान के दीपो से पुनः रोशन
मेरे इस पवन वतन को करो|
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