Saturday, July 24, 2010

रास्ता

अनजान सी डगर थी वो
अनजान  ही था वो रास्ता
दिल को कसक दे गई
ऐसी है ये दास्ताँ
चाँद पूनम का था
पर लुका छुपी का खेल
शायद खेल रहा आसमां
था दर्द लिए
तो डर भी लिए 
बैठा था वो रास्ता
सहम जाये कोई भी
ऐसी है ये दास्ताँ 
टपकती तरुदल से वे बुँदे
वो मिट्टी की सोंधी खुशबू 
वो भीगी सी हवा 
खुद में नमी लिए
और  कोई कमी लिए 
बैठा था वो रास्ता
लफ्ज़ ना दे पाए
ऐसी है ये दास्ताँ
सरसराहट पत्तियों की 
आवाज़ टपकती बूंदों की
कदम छाप बड़ते क़दमों की
फिर भी एक ख़ामोशी
कोई  दर्द भरी बात लिए 
बैठा था वो रास्ता 
खो जाये कोई 
ऐसी है ये दास्ताँ
आगे  बढ़ने से पहले 
कदम ठिठकने लगे थे
कृन्दन के सुर बढने लगे थे
रुख हवा का भी अजीब था
जाने क्या राज़ लिए
बैठा था वो रास्ता 
सोचो ना इतना 
भूतों की नहीं ये दास्ताँ 
एक तेज था उस चेहरे पर
मायूसी थी आँखों में
मीठी वाणी उन होटों की
ऐसे किसी को लिए
बैठा था वो रास्ता 
नहीं नहीं दोस्तों  
प्यार  की नहीं ये दास्ताँ
सिसकियों में एक आवाज आई 
मैं सच्चाई हूँ,मैं जननी हूँ
यह विराना नहीं
सच का है यह रास्ता
कभी इससे आबाद संसार था 
आज वीरान है ये रास्ता
खुद को आबाद समझ इठलाते 
बर्बदों से जूडी ये दास्ताँ 

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