लफ्जों में अपनी जिंदगी को,
यूँ बयां कर सकते नहीं,
कई अक्स ऐसे होते है,
जो ज़हन में जिंदा होते है,
मगर कलम से गुज़र
कलाम में उतरते नहीं|
कई मंज़र दिल की गहराई में,
रह कर अपनी हस्ती बनाये है,
यारों वाकिफ तुम भी हो,
वाकिफ मैं भी हूँ मगर,
हमारे सिवा उनको और कोई,
महसूस कर दिल में रख सकता नहीं,
यादों को यूँ ही संजोये रखना,
क्या जाने कब आँखों के पानी में,
उन मंज़रो का दीदार हो जाये|
अच्छी रचना के लिए बधाई |
ReplyDeleteआशा
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteभावप्रवण रचना...
सच है कई यादें शब्दों में नहीं उतर सकतीं ...
ReplyDeleteबहुत सुब्दर ...
वाह ... बेहतरीन ।
ReplyDeletevery intense lines...keep it up!!
ReplyDeleteAn impressive share! I've just forwarded
ReplyDeletethis onto a co-worker who had been conducting a little research on this.
And he in fact bought me lunch because I discovered
it for him... lol. So allow me to reword this.... Thanks for the
meal!! But yeah, thanks for spending some time to discuss this matter here on your web site.
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