Tuesday, August 14, 2012

क्या ख्वाब था क्या हो गए


एक ही टीस मन में उठती है,
क्या ख्वाब  संजोया था और क्या हो गए,
सोचा था हमने कुछ ज़माने को दे जायेंगे,
दो लम्हे ख़ुशी के, दो पल की मुस्कराहट,
कुछ ज़हन में छपी तस्वीरे छोड़ जायेंगे ,
विदा जब होंगे इस जहान से एक याद बन,
सबके दिलो को उल्लास से भरकर जायेंगे,
मगर ज़माना इतना भी अपना ना हुआ,
बस दर्द भरी यादों से झोली को है भरा,
अब सोचते है खुद को यादो से मिटा जायेंगे,
ख़ुशी का कारण ना बने किसी की तो ना सही,
खौफज़दा ख्वाब बनने का खेल नहीं खेल पाएंगे|

2 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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  2. आह!!!!
    बेहद खूबसूरत...........

    अनु

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