चीख रही है आज परिपाठी,
देख पतन कलम योद्धाओ का,
जिनका धर्म था सत्य संग्राम,
वे मिथ्या भाषण रच रहे है,
जहाँ व्यंग बाणों की ज़रूरत,
वहाँ जय गान सुनाई दे रहे,
दर्द जन-जन का देख भी,
बरबस ख़ामोशी का आलम है,
शर्मशार लेखकों का कुनबा हुआ,
हताहत आज कलम है,
देख कलम योद्धा का यह पतन,
वसुधा भी आत्मरक्षा के चिंतन में है|
देख पतन कलम योद्धाओ का,
जिनका धर्म था सत्य संग्राम,
वे मिथ्या भाषण रच रहे है,
जहाँ व्यंग बाणों की ज़रूरत,
वहाँ जय गान सुनाई दे रहे,
दर्द जन-जन का देख भी,
बरबस ख़ामोशी का आलम है,
शर्मशार लेखकों का कुनबा हुआ,
हताहत आज कलम है,
देख कलम योद्धा का यह पतन,
वसुधा भी आत्मरक्षा के चिंतन में है|
सटीक कथन
ReplyDeleteसादर