टुटा शाख से पत्ता,
चला अपनी राह बनाने,
खुद की मेहनत से,
खुद को खुदा बनाने,
छोड़ फ़िक्र तरु की,
छोड़ यादें साथियों की,
चला पवन के साथ बतियाने,
टूट शाख से पत्ता,
चला अपनी राह बनाने|
चला अपनी राह बनाने,
खुद की मेहनत से,
खुद को खुदा बनाने,
छोड़ फ़िक्र तरु की,
छोड़ यादें साथियों की,
चला पवन के साथ बतियाने,
टूट शाख से पत्ता,
चला अपनी राह बनाने|
कभी गति पवन ने दी,
कभी साथ मिला जलधारा का,
कभी स्थिरता को पाया,
कभी वेग था विचारों सा,
अपनी गति देख कर,
लगा था वो इठलाने,
टूट शाख से पत्ता ,
चला अपनी राह बनाने|
राहे आसाँ थी नहीं,
प्रकति पर निर्भर गति,
भय हमराही पशुओ से ,
पहुचा दे ना कोई क्षति,
मुश्किल राहों में ठहर,
जाने का डर अब,
था लगा सताने,
टूट शाख से पत्ता,
टूट शाख से पत्ता,
चला अपनी राह बनाने|
जीवन कितना था बाकि,
कितनी राहे थी बाकि,
कितनी राहे थी बाकि,
बढ़ना था तीव्र गति से,
पर था कहाँ समय साथी,
समय चक्र तेज चलने लगा,
करीब अंत लगा था आने,
टूट शाख से पत्ता ,
समय चक्र तेज चलने लगा,
करीब अंत लगा था आने,
टूट शाख से पत्ता ,
चला अपनी राह बनाने|
अंत नियति है सबकी,
सभी को लगाया उसने गले,
माटी से मिल माटी में खो गया,
आज फिर शाख पर ,
देखो एक अंकुर उभर रहा,
बन अंकुर देखो फिर
सभी को लगाया उसने गले,
माटी से मिल माटी में खो गया,
आज फिर शाख पर ,
देखो एक अंकुर उभर रहा,
बन अंकुर देखो फिर
शाख से जुड़ गया वो,
जो टूट शाख से,
जो टूट शाख से,
चला था अपनी राह बनाने|
सुन्दर ढंग से विचारणीय अभिव्यक्ति !!!शब्दों के इस सुहाने सफ़र में आज से हम भी आपके साथ है इस उम्मीद से की , सफर दोनों के लिए कुछ आसान हो
ReplyDeleteराजेंद्र मीणा, 'अथाह...'से
dhnyvaad
ati-sundar...
ReplyDeleteयही तो जन्म मृत्यु का चक्र है जिसके फ़ेर मे सब पडे हुये हैं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को तीज, गणेश चतुर्थी और ईद की हार्दिक शुभकामनाएं!
फ़ुरसत से फ़ुरसत में … अमृता प्रीतम जी की आत्मकथा, “मनोज” पर, मनोज कुमार की प्रस्तुति पढिए!
आप की ये रचना...कविता-मंच पर पुनः की जा रही है।
ReplyDeleteधन्यवाद।