मेरी अर्थी को कन्धा देने वालों,
मुझे इतना तो बतला दो,
मेरी लाश सच्ची है
या है रूह में सच्चाई,
मेरी ज़िन्दगी से मौत अच्छी है,
जो अपनों को मेरे पास ले आई,
दे रहे है जो मुझको अंतिम विदाई,
बरबस अश्को की सलामी से,
इतना बतला दो क्यों नहीं बहे,
दो बूँद भी मेरी लाचारी पर|
तन्हाई मेरी संगिनी थी,
थी हर मोड़ पर साथ मेरे,
जब दुःख ने घेरा मुझे,
जब सुख की दस्तक हुई,
जब दर्द असहनीय था
मुझे इतना तो बतला दो,
मेरी लाश सच्ची है
या है रूह में सच्चाई,
मेरी ज़िन्दगी से मौत अच्छी है,
जो अपनों को मेरे पास ले आई,
दे रहे है जो मुझको अंतिम विदाई,
बरबस अश्को की सलामी से,
इतना बतला दो क्यों नहीं बहे,
दो बूँद भी मेरी लाचारी पर|
जाने कितनी कसक लिए,
जाने कितनी शिकायत लिए,
जाने कितने ख्वाब कितनी ख्वाहिशे लिए,
पुरे जीवन की पूंजी लिए,
ज़िन्दगी के हर दर्द को लिए,
चली फूलों से सजी अर्थी मेरी,
मेरी अर्थी को फूलों से सजाने वालों,
बस इतना बतला दो क्यूँ ये फूल
बस इतना बतला दो क्यूँ ये फूल
नहीं मिले ज़िन्दगी की राहों में |
तन्हाई मेरी संगिनी थी,
थी हर मोड़ पर साथ मेरे,
जब दुःख ने घेरा मुझे,
जब सुख की दस्तक हुई,
जब दर्द असहनीय था
जब मौज से जीवन भरा था,
मेरे पीछे रोने वालों
बस इतना बतला दो
कब तक साथ निभा पाओगे,
यादों में कब तक ला पाओगे|
मेरे पीछे रोने वालों
बस इतना बतला दो
कब तक साथ निभा पाओगे,
यादों में कब तक ला पाओगे|
ज़िन्दगी की बंदिशों से आजाद हो,
बनावटी दुनिया से दूर,
मेरी अर्थी अब चल पड़ी है,
मेरी अर्थी अब चल पड़ी है,
खुले आसमां में उड़ने को,
माटी में जा मिलने को,
फूल की सुगंध बनने को,
फूल की सुगंध बनने को,
नदियों में स्वछन्द तेरने को,
मुझे अपना कहने वालों
बस इतना बतला दो क्यूँ
मौत को तमाशा बनाते हो,
अर्थी को खून के आंसू रुलाते हो|
बस इतना बतला दो क्यूँ
मौत को तमाशा बनाते हो,
अर्थी को खून के आंसू रुलाते हो|
उफ़ ……………॥बेहद मार्मिक चित्रण्।
ReplyDeleteअब तो सब करेंगे क्योंकि कोई पूछने आने वाला जो नही है………………
इस रचना ने दिल को छुआ
ReplyDeleteदेसिल बयना-खाने को लाई नहीं, मुँह पोछने को मिठाई!, “मनोज” पर, ... रोचक, मज़ेदार,...!
आप की रचना 10 सितम्बर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
मेरी कृति को इतनी सराहना एवं सम्मान देने के लिए बहुत धन्यवाद् प्रेषित करता हूँ |
ReplyDeleteआभारी
अखिलेश
बहुत मार्मिक चित्रण ...
ReplyDeleteमुर्दापरस्ती इस ज़माने का दस्तूर है ! जीवित होने पर जिस व्यक्ति को को उपेक्षा और तिरस्कार भोगना पड़ता है मरणोपरांत उसीका महिमामंडन किया जाता है ! एक अत्यंत संवेदनशील रचना !
ReplyDeletehttp://sudhinama.blogspot.com
http://sadhanavaid.blogspot.com
शुक्रिया चर्चा मंच पर आने के लिए. और कृपया आप अपने कमेन्ट में वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें.
ReplyDeleteहर पल होंठों पे बसते हो, “अनामिका” पर, ... देखिए
मेरी अर्थी को कन्धा देने वालों,
ReplyDeleteमुझे इतना तो बतला दो,
मेरी लाश सच्ची है
या है रूह में सच्चाई,
मार्मिक
बहुत ही सुन्दर भाव हैं...
ReplyDeleteथोडा सा इसे और तराश दें और प्रवाह की धार तेज कर दें तो लाजवाब बन पड़ेगी..
सुन्दर लेखन के लिए शुभकामनाएं..
रंजना जी शुक्रिया| कोई भी कला सिर्फ सराहना से नहीं निखरती| आपने मेरी कविता में जो खामी बताई है| अगली रचना के वक्त कोशिश करूँगा की उसमे कोई सुधार कर सकूँ|धन्यवाद
ReplyDeleteRajpal bhai...aapne isme bahut chaapa hai...i am sure this is one of your best works if not the best...I loved it..beautifully written :)
ReplyDeletebhai i m proud to have you as my brother.. seriously its completely a different side of yours.. i am not really able to express in such a good hindi as you can but in one word "hats off" and all the very best
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