Monday, September 20, 2010

गम की रात

कहते है तेरे दर पर खाली
ना झोली किसी की रहती है
दिल से जो मांगे उसकी
पूरी हर फरियाद होती है
क्या कमी दुआ में रह गई
जो ख़त्म नहीं यह गम की रात  होती है
चढ़ाये श्रद्धा कुसुम,पिरोकर व्रतों की माला में,
किया अभिषेक कई बार,अश्को की धारा से ,
की आरती सुबह शाम जीवन ज्योति से ,
 अर्पण किया जो कुछ  था फटी झोली में,
फिर क्यूँ नहीं ख़ुशी से मुलाकात होती है,
क्या कमी दुआ में  रह गई,
जो ख़त्म नहीं यह गम की रात  होती है|
मेरे गमो को तु क्या समझ पायेगा,
बिक तु गया है सौदागरों के हाथ,
अब तेरी दर पर,हो रही बोलियाँ आम,
मुखमंडल से लेकर चरण कमलो तक
हो गयी छवि तेरी सडको पर नीलाम,
कहाँ अब  सच्ची जय-जयकार तेरी है
किस दर पर गुहार करूँ ,
जो ख़त्म नहीं यह गम की रात  होती है|

मुश्कुराता चेहरा एक नहीं,
खुशियों की दावत में ,
समृद्धि  की कोठियों बनी है  ,
इंसानियत की कब्रों पे  ,
देख दिखावे का यह तमाशा
लगती तेरे हस्ती ही झूठी है,
यत्न करे कितने हम, पर शायद
 ये गम की रात ही हमारी ज़िन्दगी है |
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