काश मैं भी इंसान नहीं
खूबसूरत कटपुतली होता
किसी आलिशान महल की
रत्न जडित ताको में
किसी मोम के पुतले की
नज़र की ताक में बैठा होता
मेरे रूप की तारीफ सुन
अपनी अभिमानी अग्नि को
अपनी अभिमानी अग्नि को
और प्रचंड कर रहा होता
काश मैं भी इंसान नहीं
खूबसूरत कटपुतली होता
मेरे अंतर की कालिमा की
परवाह किसी को ना होती
चाहे अंतर से मैं खोखला
या कोई पत्थर होता
मेरे चेहरे की रोनक पर
हर कोई दिल फेक होता
क्योकि सच मैं में
उसी की परछाई होता
काश मैं इंसान नहीं
खूबसूरत कटपुतली होता
इंसानी ज़ज्बातो की ना
कोई कद्र होती
जग की रीतो पर
यूँ ना मेरा दिल रोता
आँसू से चेहरा भिगो कर
यूँ ना मेरा दिल रोता
आँसू से चेहरा भिगो कर
फकीर का ना मुझे
तख़्त मिलता
काश मैं इंसान नहीं
खूबसूरत कटपुतली होता
कीमत इंसान की दो आने
कटपुतली की अनमोल है
जान से मोल कम होता है
जान से मोल कम होता है
बेजान की क्यूँ
हर कोई कद्र करता है
हर कोई कद्र करता है
इसका रहस्य जान मैं लेता
काश मैं इंसान नहीं
खूबसूरत कटपुतली होता
nahi....tu abhi insaan hi badhiya hai...agar tu kathputli hota to fir itni badhiya kavitayein kaun likhta ?
ReplyDeleteBehatreen Kavita Akhilesh ji...sari hi kavitaayein badi achi hain..bahut badhai..
ReplyDeleteमन का दर्द व्यक्त करती ...सुंदर रचना ...
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 22 अक्टूबर 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद! .
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