Sunday, August 7, 2011

मेरी परिधि

मेरे परो की क्षमता को,
मापदंडो से ना परखो तुम,
मेरे ख्वाबो की उड़ान को,
मेरे कृत्यों से ना नापो तुम,
मैं पंछी  मतवाला हूँ
तुम्हारी परिधि का दास नहीं,
प्रेम परिधि से बंधा हूँ,
पर यह ना समझो मुझे,
मेरी परिधि की पहचान नहीं|

अभी खामोश हूँ मैं ,
नहीं कोई हरकत है परो में,
लगता हिम सा शीत अंतर,
बेजान लगते है इरादे मेरे,
देख  मुझे ना उपहास करो ,
जग कल्याण की खातिर,
है  चिर समाधी धरी मैंने ,
है दिनकर सा ताप मुझमे,
हूँ अनंत का वारिस  मैं ,
दिखलाता हूँ  नहीं मगर 
है मेरी परिधि अनंत से परे|
निर्बलता की मूरत नहीं ,
विनाश का पर्याय हूँ,
थमा निस्वार्थ प्रेम बंधनों से,
नहीं सहस्त्र शस्त्र शक्ति से ,
मेरे शिव को ना ललकारो तुम  ,
कहीं तांडव सा विनाश ना हो,
रोको अपने वारो को तुम ,
कहीं टूट ना प्रेम बंधन जाये,
करो सम्मान अपनी परिधि का,
कहीं मेरे पर ले मुझे
मेरी परिधि ना पहुच जाये|

16 comments:

  1. मेरे परो की क्षमता को,
    मापदंडो से ना परखो तुम,
    मेरे ख्वाबो की उड़ान को,
    मेरे कृत्यों से ना नापो तुम,
    मैं पंछी मतवाला हूँ
    तुम्हारी परिधि का दास नहीं,
    प्रेम परिधि से बंधा हूँ,
    पर यह ना समझो मुझे,
    मेरी परिधि की पहचान नहीं|

    really nice..
    likhte rahen..

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  2. वाह बहुत ही सुन्दर
    रचा है आप ने
    क्या कहने ||
    लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  4. भाव और अभिव्यक्ति दोनो ही खूबसूरत और शब्दों का सुंदर चयन...

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  5. अपनी परिधियों का न उल्लंघन करें न किसी को करने दे ...
    अच्छा सन्देश है कविता में !

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  6. रक्षाबंधन एवं स्वतन्त्रता दिवस पर्वों की हार्दिक शुभकामनाएं

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  7. मेरे परो की क्षमता को,
    मापदंडो से ना परखो तुम,
    मेरे ख्वाबो की उड़ान को,
    मेरे कृत्यों से ना नापो तुम,
    मैं पंछी मतवाला हूँ
    तुम्हारी परिधि का दास नहीं,
    bahut pasand aayee.

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  8. बेहद सुंदर रचना।

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  9. Akhilesh ji,
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति , आभार.

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.

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  10. ek jheel jisme bheetar halchal hai par upar se shant ! bahut bhavpoorn rachna !

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  11. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना ..|

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