जननी तेरी कोख काली हो गयी,
कुदरत तेरे तप में श्राप दे गयी,
जिन हाथो को देखना ही सुकून था,
आज उनकी सिरत खुनी हो गयी,
जिनके लिए चुन सभी काँटों को,
एक आसन राह को बनाया,
अब वही कदम देखो कैसे,
ठोकर मासूमो को मार रहे,
कुदरत तेरे तप में श्राप दे गयी,
जिन हाथो को देखना ही सुकून था,
आज उनकी सिरत खुनी हो गयी,
जिन आँखों में तेरा हर सपना था,
जिनको नमी से तूने दूर रखा था,
आज अजब तमाशा देखता है,
उन आँखों में अब लहूँ बस्ता है,
जिन कदमो को चलना सिखाया,जिनके लिए चुन सभी काँटों को,
एक आसन राह को बनाया,
अब वही कदम देखो कैसे,
ठोकर मासूमो को मार रहे,
अजीब है मगर मासूम जननी,
तेरा सृजन ही तुझे तडपा रहा,
लज्जित कोख तेरी होती है,
हर दिन जाने अपनी कृति पर,
कितनी जननी रोती है|
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