बना झुण्ड गीदड सिहों का शिकार कर रहे|
जब से रंगे सियार तख़्त पर है सो रहे|
पाबंधी है सिंह को अब दहाड़ने पर मगर|
हो निर्भीक स्वान अपना राग है रो रहे|
है बाज पिंजरे में निरपराध बंद हुए|
और कबूतरबाज़ी के खेल है हो रहे|
जब बर्बरता को एक चूक कही गयी|
तब मेरी भी मूक बगुला साध टूटी|
तु ही बता भारत भूमि की अब|
कैसे तेरी अब मैं वंदना करूँ|
जब से रंगे सियार तख़्त पर है सो रहे|
पाबंधी है सिंह को अब दहाड़ने पर मगर|
हो निर्भीक स्वान अपना राग है रो रहे|
है बाज पिंजरे में निरपराध बंद हुए|
और कबूतरबाज़ी के खेल है हो रहे|
जब बर्बरता को एक चूक कही गयी|
तब मेरी भी मूक बगुला साध टूटी|
तु ही बता भारत भूमि की अब|
कैसे तेरी अब मैं वंदना करूँ|
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