Tuesday, November 11, 2014

मौत एक पल मुझे जीने दे

मौत महसूस तो होने दे,
की मैं भी कभी जिंदा था,
इस जग के गमो में
ख़ुशी के कुछ पलो मे,
कहीं मैं भी मौजूद था,
ज़माने की ख्वाहिश को,
अपनों की आरज़ू को,
पूरा करने के बाद भी,
खुद को खोज पाता था,
जी रहा था मुर्दे की तरह,
अब मैं जागना चाहता हूँ,
संग तेरे फिर मैं चलूँगा,
बस एक बार अपनी बात,
कहने लेने दे तू  मुझे|
कुछ पल ही सही मगर,
मुझे खुद से रूबरू होने दे,
रुक जा तू एक क्षण तू.
मुझे मेरी आरज़ू जानने दे ,
कौन अपना है कौन बेगाना,
इतना सा बस देखने दे,
अंत में आरम्भ की कर लूं,
बस इतनी से जिंदगी दे दे,
जितना जिया नहीं अब तक,
उतना एक क्षण में  जीने दे ,
अलविदा नहीं कहना नहीं मुझे,
मगर ज़माने की यादो में,
हूँ मैं नहीं इतना कहने दे,
मौत चलूँगा साथ तेरे,
बस महसूस होने दे,
की मैं कभी जिंदा भी था|  

1 comment:

  1. जिंदगी में ही मौत भी समाई रहती हैं ...
    बहुत खूब!

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