हमारी गुलामी की भी हद है,
हर दम आँख में आसूं मगर,
फिर भी सियासत बुलंद है,
शोर कई सुनाई देते है मगर,
आज भी सिंहासन अडिग है,
जिनको मान अपना हमदर्द,
दिल के गहरे घाव बताते थे,
आज वे खुद कटार चला रहे,
भय से भाग्य लिखे जा रहे है,
दासता का दर्द तब अपार होता है,
जब कोई सक्षम जन सत्ता में,
कुबेर सत्ता का पक्षधर बनता है|
हर दम आँख में आसूं मगर,
फिर भी सियासत बुलंद है,
शोर कई सुनाई देते है मगर,
आज भी सिंहासन अडिग है,
जिनको मान अपना हमदर्द,
दिल के गहरे घाव बताते थे,
आज वे खुद कटार चला रहे,
भय से भाग्य लिखे जा रहे है,
दासता का दर्द तब अपार होता है,
जब कोई सक्षम जन सत्ता में,
कुबेर सत्ता का पक्षधर बनता है|
आज भी चल रही वही परिपाठी,
रोटी की जगह मिलती लाठी,
भूखा आज भी भारत का भाग्य,
हड़प गया फिर धनानद राज्य,
न्याय हुआ फिर लक्ष्मी का दास,
निरंकुश हुआ फिर पूरा राष्ट्र,
अब किस देश की मैं बात करूँ,
यहाँ शहादत को मौत हो गयी,
और वीरता बन गयी मदहोशी,
जल रही है धरा हर कदम पर,
कहीं धरा अपनों के खून से लाल,
कहीं अपनों के अश्को से बंज़र,
खुद पर दया का बोध तब होता है
जब इस दुःख के समय भी ,
समृद प्रजा सा ऐलान होता है|
No comments:
Post a Comment