कर्तव्यपथ पर चलते हुए,
खो गया कहीं मेरा अंतर,
दूजो कि ज़िन्दगी जीते हुए,
अब खुद को पहचानना हुआ असंभव ,
बढती वेदना है,बढ रहे है सवाल ,
बढती यह बैचेनी ,
बढता यह असमंज़स है,
खुद ही खुद में उलझा हूँ,
और ज़माने को सिख देता हूँ,
जीवन गुर बतलाता हूँ,
सब समझ ज़माने कि होते हुए भी
नासमझ ही खुद को पाता हूँ,
सत्य कि परिभाषा से अवगत हूँ,
पर जाने क्या सत्य क्या रचना है ,
क्या माया क्या सपना है ,
क्यूँ कोई पराया ,
जाने क्यूँ कोई अपना है ,
क्यूँ है यह रिश्ते ,
क्यूँ बंधीशो से जग बंधा है ,
समझ ना मैं पाता हूँ
चहुँ ओर के अन्धकार को,
किसी नयी डगर मुझे जाना है,
किसी नयी डगर मुझे जाना है ......
खो गया कहीं मेरा अंतर,
दूजो कि ज़िन्दगी जीते हुए,
अब खुद को पहचानना हुआ असंभव ,
बढती वेदना है,बढ रहे है सवाल ,
मुस्कराहट भी अंतर्मन तक पहुच न पाती है,
सुन्दर तितलियाँ भी ना मन को लुभाती है
सुरमयी आलाप भी बरबस शोर लगता है,
सुन्दर कुसुमो से लदा उपवन है,
वीरान मरुतल ही लगता है ,
बेगानी सी यह पवन है,
बेगाना है यह समाँ,
बढती यह बैचेनी ,
बढता यह असमंज़स है,
खुद ही खुद में उलझा हूँ,
और ज़माने को सिख देता हूँ,
जीवन गुर बतलाता हूँ,
सब समझ ज़माने कि होते हुए भी
नासमझ ही खुद को पाता हूँ,
सत्य कि परिभाषा से अवगत हूँ,
पर जाने क्या सत्य क्या रचना है ,
क्या माया क्या सपना है ,
क्यूँ कोई पराया ,
जाने क्यूँ कोई अपना है ,
क्यूँ है यह रिश्ते ,
क्यूँ बंधीशो से जग बंधा है ,
समझ ना मैं पाता हूँ
चहुँ ओर के अन्धकार को,
समझ कैसे सकता हूँ,
जब अँधियारा भीतर भी भरा है,
मुझे वह अंधकार पढना है ,
खुद ही खुद से लड़ना है ,
हर उलझन को सुलझाना है,
अब अंतर -तिमिर मिटा ,
दशों दिशा में आत्म -अलोक फैलाना है,
किसी नयी डगर मुझे जाना है,
किसी नयी डगर मुझे जाना है ......
Sahi Rajpal.....[:)]
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