Thursday, March 31, 2011

बचपन

तारो के पार एक
जहान  बसता है,
बचपन जिसमे अपने
सपने बुनता है,
उन बचपन की यादों को
लफ्जों में लिखता हूँ,
आज फिर भोलेपन की
पराकाष्ठा को छूना चाहता  हूँ|
प्यारी परी कोई आएगी
 मिठाई ,खिलौना,मखमली बिछोना,
हर इच्छा पूरी हो जायेगी,
शरारत ना कोई करना ,
वर्ना खफा हो जायेगी ,
 फिर परी को जहन में ला 
चैन की नींद सोना चाहता हूँ 
आज फिर भोलेपन की
पराकाष्ठा को छूना चाहता  हूँ|
वो अंधियारे कमरे का बाबा ,
वो नीम के पीछे का भूत,
वो  छप्पर वाली बिल्ली ,
वो बड़ी पहाड़ी वाले डाकू ,
बहुत  ही सताते थे|
उन अनदेखे चेहरों
से फिर डरना चाहता हूँ 
आज फिर भोलेपन की
पराकाष्ठा को छूना चाहता  हूँ|
कहाँ बचपन खो गया 
क्यूँ तनहा छोड़ गया 
क्या फिर अब कभी 
इस कड़वे सच से दूर
जिंदगी मिल पायेगी
फिर बचपन को पाने 
की राह ढूंढता हूँ
भोलेपन की पराकाष्ठा
को छूना चाहता हूँ

10 comments:

  1. Akhilesh aapne to mujh 62 yrs old ka bhee bachapan saamne la diya......
    dil se niklee bahut sunder abhivykti.......
    Kis IIT me ho ?
    all the best.

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  2. धन्यवाद, सरिता जी

    मैं IIT Kanpur (uttarpradesh) में हूँ|

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  3. बड़ी प्यारी मासूम रचना है ...... बहुत सुंदर

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  4. बहुत बढ़िया अखिलेश भैया ......सुंदर लिखी है बचपन की कविता

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  5. आज तो जैसे बचपन को जी लिया ..अच्छी प्रस्तुति

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  6. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 05 - 04 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  7. वाह! बहुत उम्दा!

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  8. बचपन की मासूमियत का बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है……अब तो अपने बच्चो मे ही वो वापस आयेगा।

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  9. प्यारी परी कोई आएगी
    मिठाई ,खिलौना,मखमली बिछोना,
    हर इच्छा पूरी हो जायेगी,
    शरारत ना कोई करना ,
    वर्ना खफा हो जायेगी ,
    फिर परी को जहन में ला
    चैन की नींद सोना चाहता हूँ
    आज फिर भोलेपन की
    पराकाष्ठा को छूना चाहता हूँ|
    aankhen band pari lok haazir... yah jadu mann ki chaah se hota hai

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