हो गयी ज्वाला शांत भले,
लहू मगर अब भी लाल है,
बहता रगों में यह लावा ,
उतना ही विकराल है|
दहशत पर दया का दान
कब तक दे पाएंगे,
गुनाह को गलती समझ,
कब तक भुलायेंगे,
अभी दिखी है थोड़ी हलचल,
अब तमाशा शुरू होने को है|
अपने बाहुबल से अभी,
तभी नैनो में नीर है,
शुरू गुरुकुल हुआ अब कराने,
शक्ति की सार्थकता का बोध,
रण विजय से बढ़कर लक्ष्य,
है नवनिर्माण का ज्ञान ,
वर्ना जीतने के लिए जंग ,
तो है काफी एक हुंकार,
लिखने को नया इतहास
तत्पर है समय की कलम,
बस असल प्रहार होने को है|
लहू मगर अब भी लाल है,
बहता रगों में यह लावा ,
उतना ही विकराल है|
दहशत पर दया का दान
कब तक दे पाएंगे,
गुनाह को गलती समझ,
कब तक भुलायेंगे,
अभी दिखी है थोड़ी हलचल,
अब तमाशा शुरू होने को है|
एक हाथ धनुष,दूजे में गीता,
बुद्ध कब तक रोक पाएंगे,
सब्र का इम्तिहान लेने वाले,
सिंह को मेमना समझते है ,
समाधी में लीन शिव को,
लाचार समझने वाले ,
लाचार समझने वाले ,
तीसरे नेत्र के अंगार भूले है,
महज साँसों की तेजी से
आई तख़्त में दरारे है,
खनकने दो कलुषित कनक,
अब तमाशा शुरू होने को है| |
खुद ही अनजान है हम,आई तख़्त में दरारे है,
खनकने दो कलुषित कनक,
अब तमाशा शुरू होने को है| |
अपने बाहुबल से अभी,
तभी नैनो में नीर है,
शुरू गुरुकुल हुआ अब कराने,
शक्ति की सार्थकता का बोध,
रण विजय से बढ़कर लक्ष्य,
है नवनिर्माण का ज्ञान ,
वर्ना जीतने के लिए जंग ,
तो है काफी एक हुंकार,
लिखने को नया इतहास
तत्पर है समय की कलम,
बस असल प्रहार होने को है|
बहुत खूब , शुभकामनाएं.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधार कर अपना स्नेहाशीष प्रदान करें
बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति
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